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________________ रघुवरजसप्रकास [ ८७ सतबतकी भगती जगजाहर करी । ऐसा स्त्रीरामचंद्र करणानिध । असरण-सरण न्याय ही वाजै। जिसके ताई जेता बिरद दीजै जेता ही छाजै ॥ १६४ वारता रामचंद्र जिसा सिध रजपूत कोई वेळापुळ होवै छै । ज्यांके प्रताप देव नर नाग खटबन सुख नींद सोवै छै । राजनीतका निधांन सींह बकरी एक घाटै नीर पावै छ। पंछीकी पर बागां बाज दहसत खावै छै। तपके प्रभाव पाणी पर सिला तरै छ। भ्रगुपत सा बंक ज्यांका बळ काढ़ सणंकसुधा करै छ । बाळ दहकंधसा अरोड़ान रोड़ जमींदोज कीजै छै । सुग्रीव भभीखण जिसा निर पखांनं केकंधा लंक दीजै छ । जांका भाग धन्य जे रामगुण गानै छै । जांमण मरण भय मेट अभैपद पावै छै ॥ १६५ १६४. करणानिध-करुणानिधि, दयासागर । ताई-लिए, निमित्त । जेता-जितने । छाजै शोभा देते हैं, शोभित होते हैं। १६५. जिसा-जैसा। सिध-सिद्ध, वीर । वेळापुळ-समय, कभी। खटबन-षडवर्ण, ब्राह्मणदि छ जातिएं विशेष । निधान-खजाना। पर-पंख । बाज-शिकारी पक्षी विशेष । दहसतभय, डर । सिला-पत्थर । भ्रगुपत-परशुराम। बंक-विकट, बांकुरा अथवा त्र्यंबक, महादेव । बळ-गर्व। सणंकासुधा-बिलकुल सीधा। बाळ-बालि बंदर। दहकंधदशकधर, रावण । अरोड़ा-जबरदस्त । जमींदोज-जो गिर कर जमीनके बराबर हो गया हो, जमीनके अंदर । भभीखण-विभीषण । निरपखां-जिसका कोई पक्ष या सहायक न हो। केकंधा-(सं. किष्किधा) मैसूरके अासपासके देशका प्राचीन नाम । जांका-जिनके। जांमण-जन्म । अभैपद-मोक्ष । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003420
Book TitleRaghuvarjasa Prakasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSitaram Lalas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages402
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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