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रघुवरजसप्रकास
दूहौ असम चरण मात्रासु यम, कहीया छंद 'किसन'। राघव जस छंदां रहस, बुध सारीख ...न ।। १६६
इति मात्रा असम चरण छंद संपूरण ।
अथ मात्रा दंडक छंद वरणण
भगवत गीताऊ भणै, बीता अघ सरबेण । सीता नायक संभरै, जन भीता नह जेण ॥ १६७
सोरठौ पेट हेक कज पात, मेट सोच सांसौ म कर । रे संभर दिन-रात, नाम विसंभर नारियण ॥ १६८
__ अथ मात्रा दंडक छंद लछण बे छंदां मिळ छंद व्है, मात्रा दंडक सोय। छप्पे कुंड ळियौ कवित्त, फिर कंडळिया होय ॥ १६६
अथ छप्पै लछण
दहौ कायब उल्लालौ मिळ, छप्पैं तिण थळ होय । ग्यार तेर मत च्यार पय, पनर तेर पय दोय ॥ २००
छप्पै उदाहरण
कवित छप्पै पंखी मुनि मन पंख, तीर भव-सिंधु तरायक ।
मुकत त्रिया सुख मूळ, स्रवण ताटक सुभायक ॥ १६६. यम-ऐसे । रहस-रहस्य, भेद। १९७. भण-कहते हैं। बीता-व्यतीत हो गये। प्रध-पाप । सरबेण-सब, समस्त । संभर
स्मरण कर । भीता-भयभीत । जेण-जिससे । १६८. पेट हेक कज-एक पेटके लिए। पात-पात्र, कवि । सोच-चिता। सांसौ-संशय, शक ।
संभर-स्मरण कर । विसंभर-विश्वंभर, ईश्वर । नारियण-नारायण । १६६. सोय-वह । २००. कायब-काव्य, काव्यछंद । थळ-स्थान । मत-मात्रा। पय-चरण । २०१. पंखी-पक्षी। तीर-तट,किनारा। भव-सिंधु-संसार रूपी समुद्र । तरायक-तैरने वाला।
मुकत-मुक्ति। स्रवण-कान । ताटंक-कर्ण-भूषण। सुभायक-सुन्दर ।
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