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रघुवरजसप्रकास
[ ८६ अघ कळ घोर अंधार, बिंब रवि चंद्र बिकासण।
प्रगट धरम द्रुम उभय यम स्रति नयण सुभासण ॥ बद 'किसन' रकार मकार बिंहु, सत रथ चक्र समाथका । भव जन तमाम कारक अभय, नांम अंक रघुनाथका ॥२०१
अजय नाम छप्पै लछण
बिध यकहत्तर छपय बद, सतर गुरु लघु बार। अजय जिको गुरु घट बधै, बेलघु नाम निहार ॥ २०२
अजय छप्पै उदाहरण
छप्पय
जै जै भूपां भूप, सदा संतां साधारै। दीनां दाता देव, मेछ आनेकां मारै ॥ सीता स्वामी सूर, बीर बागां बांणासां ।
लंका जैहा लेर, दांन देणौ तं दासां ॥ सेहाई संतां सेवगां, ताई देणा तापरां । औनाड़ा राघौ भू अखै, पांणां धाड़ा आपरां ॥ २०३ अथ यकहतर छप्पै नाम कथन
छप्पै अजय १ बिजय २ बळ ३ करण ४ , बीर ५ वैताळ ६ वहंजळ ७ । मरकट ८ हरिह हर १० ब्रहम ११ ,
इंद १२ चंदण १३ सुभकर १४ वळ । २०१. अघ-पाप । कळ-समूह, कलियुग। बिब-प्रतिबिंब । भव-संसार । कारक-करने वाला। २०३. साधार-रक्षा करता है। मेछ-म्लेच्छ, असुर । पानेकां-अनेक । सूर-सूरवीर । बागां
बजने पर, चलने पर। बांणासां-तलवारों । जैहा-जैसा। दासां-भक्तों। सेहाईसहायक । ताई-आततायी, दुष्ट । ताप-कष्ट । प्रौनाड़ा-वीर। पांणां-हाथों। धाड़ा-धन्य-धन्य।
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