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रघुवरजसप्रकास
अथ गीत उमंग सावझड़ौ लछण
दूहौ
सोलह मत तुक प्रत सरब, मोहरा च्यारू मेळ । सबड़ौ सगणंत सख, सोय उमंग सचेळ ॥ २३६
[ २८७
अरथ
घड़ उथल पण तुक प्रत मात्रा सोळं होय । अंत गुरु होय नै यूंही उमंगरै तुक प्रत सोळं मात्रा नै अंत गुरु होय पिण प्रतरौ भेद छै सौ घड़उथल तौ प्राधासूं उलटै नै उमंग सावझड़ौ च्यारू तुकां मिळेने उलटे नहीं यौ भेद छै ।
अथ गीत उमंग सावझड़ी उदाहरण गीत
नर नाग सुरा सुर जोड़ नथी, कथ वेद पुरांण दुजां कथी । मुरकीटमधु हरा सिंध मथी, रट रे मन राघव दासरथी || के नाथ अनाथ सुनाथ किया, सुज जेण वेरी दळ चाप सिया । वळ रांवण कुंभ जिसा वहिया, है कांम भलौ भज राम हिया ॥ मह पाळ सिधां कुळ मित्तारौ, पह पाळक संतां पीसारौ 1 जग जाय जमारौ जीतारौ, सुज संभर सायब सीतारौ ॥ वाराधिप सेतां बंधगरौ, कुळ राखस जूथ निकंदणरौ । दिल तूं 'किसना' जग बंदगरौ, नहचौ रख कौसळ नंदणरौ ॥२३७
२३६. सगणंत - जिसके अन्तमें सगण हो । सख- कह ।
२३७. जोड़ - वराबर, समान । नथी- नहीं ।
कथ - कथा । दुजांण
( द्विज) - महर्षि, मुनि । सिंध - समुद्र | दळ
।
कीटमधु - मधुकैटभ ।
।
भलौ - उत्तम, ठीक ।
कथी - कही । मुर - एक ग्रसुरका नाम तोड़ कर । चाप-धनुष । सिया - सीता । वहिया - चले गये महपाळ - ( महिपाल ) राजा । सिधां श्रेष्ठ । कुळ मीतारौ -सूर्य का वंश | संभरस्मरण कर । सायब - ( साहिब) स्वामी । वाराधिप-समुद्र । जूथ-समूह । निकंदणरौनाश करने वाले का । नहचौ-विश्वास, धैर्य । नंदणरौ-पुत्रका
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