________________
२८६ ]
रघुवरजसप्रकास सोळ मत तुक पंचमी, संबोधन धुर मध । तुक छठी मझ नव कळा, सौ सतखणौ प्रसिध ॥ २३४
प्ररथ गीत छोटौ सांगोर तथा पूणियौ सांणोर पै'ली तुक मात्रा अठारै । दूजी तुक मात्रा बारै । तीजी तुक मात्रा सोळं होय नै बीच संबोधन रेकार शब्द पांचमी तुकरै पाद मध्य आवै नै तुक छठी मात्रा नव होवै जिणनै गीत सतखणौ कहीजै ।
___ अथ गीत सतखणौ उदाहरण
गीत प्रांणी सौ झूट कपट चित परहर, गुण हर काय न गावै । जमदळ आय फिरेलौ जाडौ, आडौं कोय न आवै । रे दिन जावै रे दिन जावै, लाहौ लीजिये ॥ बेखै मात पिता त्रिय बंधव, कुळ धन धंधव काचौ । चौरंग मझ जमहूँत बचायब, साहिब राघव माचौ । रे जग काचौ रे जग काचौ, लाहौ लीजिये । अंत दिनां अाडौ खम पासी, साचौ जनां संबंधौ । डिग चित अबरां दिसी म डोलै, बोलै लिछमण बंधौ । रे जग धंधौ रे जग धंधौ, लाहौ लीजिये । धू पहळाद भभीखण सिंधुर, अपणाया सुख प्रापे । पीतंबर काटै दुख पासा, थिरके दासां थापे ।
रे हरि जापै रे हरि जापै, लाहौ लीजिये ॥२३५ २३४. मध-मध्य । मन-मध्यमें । कळा-मात्रा। २३५. परहर-छोड़ दे। गुण-यश । काय न-क्यों नहीं । जाडौ-बहुत, घना। कोम न
कोई नहीं। लाहौ-लाभ । बेख-देखते हैं। त्रिय-स्त्री। बंधद-भाई धंधव-धंधा, काम । चौरंग-आवागमनका बंधन यह। मझ-मध्य में। जमहत-यमराज से। साहिब-स्वामी। जना-भक्तों। संबंधौ-संबंध । श्रवरां-ग्रन्यों। दिसी-पोर, तरफ । म-मत । लिछमण-लक्ष्मगा। बंधौ-भाई, बंध। धू-ध्र व भक्त। पहळादप्रहलाद । सिंधुर-गाज। शीतंबर-पीताम्बर वस्त्र धारण करने वाला विष्णु । जापैजप, स्मरण कर ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org