SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 310
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ रघुवरजसप्रकास [ २८५ प्ररथ जिण गीतरै प्रथमरी तीन ही तुको मात्रा चवदै चवदै होय । मोहरे रगण गण होय । तुक पै'ली मात्रा चवदै, तुकांत रगण होय । तुक दूजी मात्रा चवदै, तुकांत रगण होय । तुक तीजी मात्रा चवदै, तुकांत रगण होय । तुक चौथी मात्रा अग्यारे, तुकांत मोहरे सगण होय सौ गीत नाग कहै छै । हे खगराज गरुड़ सौ गीत रसावळी कहावै छै । अथ गीत रसावळौ उदाहरण गीत सझ भुजां निज धानंख सरा, मझ अडै भूहां मौसरा । रिण राम नप दसमाथरा, रिक्त वेध लगा खरा ।। उण दसा राखस आहुड़े, भड़ भाल कपि यण दस भडै । लूथबथ अह घणसुर लड़े, गज धरा नभ गड्डै ॥ कोमंड कीधां कुंडळां, वरसाळ सर दुत वीजळा । खळ कुंभ राघव खंडळा, झड़ नयण भाग झळा ॥ भड़ रांम दस सिर भंजिया, दत लंक सरणागत दिया । विभ अवध सिय ले प्राविया, कळ चंदनाम किया ॥२३२ अथ गीत सतखणा लछण दहा लघु सांणोर क पूणियौ, धुर अठार बी बार । सोळ बार क्रम मत सरब, दु गुरु तुकंत बिचार || २३३ २३२. धानख-धनुष । सरां-बाण, तीर | मझ-मध्य । मोसरा-श्मश्रु, मूंछे । दसमाथरा रावरणका। खित-पृथ्वी । वेध-युद्ध । दसा-पोर, तरफ। राखस-राक्षस । पाहु.भिड़े। भड़-योद्धा। भाल-रीछ । कपि-बंदर। यण-इस । दस-तरफ, अोर । लथबथ-परस्पर भिडने की क्रिया, द्वन्दयूद्ध । प्रह-लक्ष्मण। घरणसर-मेघनाद । यमान हुए। कोमंड-धनुष। वरसाळ-वर्षा । सर-तीर, बाण । दुत-द्यति । वीजळा-बिजली, तलवार । दस सिर-रावण । दत-दान । विभ-वैभव । अवध-अयोध्या। सिय-सोता। कळ-युद्ध । चंदनामा-यश । २३३. बी-दुसरी। बार-बारह । सोळ-सोलह । मत-मात्रा। दु-दो। ग Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003420
Book TitleRaghuvarjasa Prakasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSitaram Lalas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages402
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy