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रघुवरजसप्रकास जपां कमण नूप ता जोड़ अधपत आजरा । बंदां मघादिक सुर ब्रद रघुबर राजरा ॥ छत्रवट तूझ दसरथ नंद ओप अच्छेहड़ा । बाढे खगां रिण दसमाथ कर धड़ बेहड़ा ॥ वळमुखहंत निकसै वैण आखर वेहड़ा । जुग पद घसै मुगट सहीव सुरपत जेहड़ा ॥ वेढक फरसधर विकराळ बंक बंकसा । सुज जिण कीधा राम नरेस सूधसणंकसा ॥ लहरे हेक दीधी लछीस थांनक लंकसा । सुज पय नमै अविरळ सीस सुरप असंकसा ॥ दखू किसू हे महाराज दासां दास रे । वरणं जीभहूं बुध जोग नित जसवास रे ॥ हिरदै वसौ ध्यान हमेस रूप हूलास रे । जपै 'किसन' रख रघुराज, ौ पण आस रे ॥ २३०
अथ गीत रसावळ लछण
दूही प्रथम तीन तुक चवद मत, मोहरे रगण मिळाय ।
चवथ ग्यार मत सगण मुख, रसावळी खगराय ॥ २३१ २३०. कमण-कौन । ता-उस । जोड़-समान, बराबर । अवधपत-श्रीरामचंद्र भगवान ।
मघादिक-इंद्र आदि । सुर-देवता। ब्रद-समूह । छत्रवट-क्षत्रियत्व । तूझ-तेरा। नंद-पुत्र । अच्छेहड़ा-अपार । बाढे-काट डाले। रिण-युद्ध । दसमाथ-रावण । धड़शरीर । बेहड़ा-एक के ऊपर एक रखने की क्रिया या ढंग, तह । वैण-बचन । वेहड़ाविधाताके । जुग-दो। पद-चरण । सुरपत-इन्द्र । जेहड़ा-जैसा । बेढक-वीर । फरसधरपरशुराम। कीधा-किया। सूधसणंकसा-बिलकुल सीधा । लहरे-तरंगमें, उमंगमें। दीध-दे दी, दे दिया। लछीस-लक्ष्मीपति। थानक-गढ़। लंकसा-लंकाके समान । पय-चरण । अविरळ-निरंतर । सुरप-इन्द्र । दखू-कहू। दासांदास-भक्तोंका दास ।
बुध-बुद्धि । जोग-योग्य । जसवास-यश, कीर्ति । हिरदै-हृदयमें । २३१. मोहरे-तुकबंदी। चवथ-चौथी। खगराय-गरुड़ । नाग-शेषनाग । खगराज-गरुड़।
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