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रघुवरजसप्रकास
[ २७१ तुक मात्रा अठारै अंत लघु । सौ बडौ सांणोर सोई सारसंगीत कहावै । सौ प्रोदमें सुध सांणोर सतसर कह्यौ छ सौ देख लीज्यौ । इति गीत सारसंगीत निरूपण ।
अथ गीत सोहवग सांणोर लछण
दूहौ धुर अठार चवदह धरौ, सोळ चवद गुरु अंत । वेखह सोई सीहवगौ, किव सांणोर कहत ॥ २०२
अरथ जिण गीतरै पै'ली तुक मात्रा अठारै होवै। दूजी तुक मात्रा चवदै होवै । तीजो तुक मात्रा सोळ होवै। चौथी तुक मात्रा चवदै अावै सौ मोहणौ सांणौर, सोई सीहवंग कहीजै। नाम भेद छै, लछण भेद नहीं । पैली सांणोर कह्यौ छै मो देख लीज्यौ । इति सीहवग गीत निरूपण ।
अथ गीत अहिगन सांणोर लछण
धुर अठार मत्त सुधर, पनर सोळ पनरेण । . अंत लघु सौ अहिगन, जपै वेलियौ जेण ॥ २०३
अरथ गीत अहिगन नै वेलियौ सांणोर अंक छै। नांममें भेद छै, लछण में भेद नहीं । पै'ली तुक मात्रा उगणीस तथा अठार होय । दूजी तुक मात्रा पनरै होय । तीजी तुक मात्रा सोळ होय । चौथी तुक मात्रा पनरै होय। तुकांत लघु होय । पछै मात्रा सोळ , पनरै होय । ई क्रमसू होय सौ वेलियौ सांणोर, सोई अहिगन सांणोर, पै'ली अागे सांणोरांमें कह्यौ छै सो देख लीज्यौ । इति अहिगन गीत निरूपण।
अथ गीत रेणखरौ लछण
रटां गीत रेणखरौ, सौं जांणजै प्रहास ।
तिल भर भेदन तेणमें, सुध लछण सर रास ॥ २०४ २०२. सोळ-सोलह । चवद-चौदह । वेखह-देख । कहत-कहते हैं । सोई-वही । २०३. पनर-पनरह। पतरेण-पनरहसे । जेण-जिसको। सोळे-सोलह । पछै-पश्चात,
बादमें । सोई-बही। २०४. तेणमें-उसमें । अगाडी-पहिले । ज्यां-जिन । हर--अर, और । सोई-वह, वही।
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