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रघुवरजसप्रकास
छंद हारी (त.ग.ग.) धांनंख-धारी, पै नीत-चारी । सौ सीळ सींधू, बाताद बंधू ॥ सोहै सकाजं, जांनंक राजं । जामात जोई, संभार सोई ॥ रेवंस रूपं, भूपाळ भूपं । सारंगपाणं, जीहा जपणं ॥ दी औध ईस, पै बंद सीसं । तं धन्य ताम, रे सेव रामं ॥ २८
छंद हंस (भ.ग.ग) रांम भजीजे, झौड़ तजीजे, लाभ सदेही, वेद वदेही। संत सिहाई, राघवराई, वौ हरि गावौ, पै उध पावौ ।। २६
छंद जमक (न.ल.ल.) धर धनक, जग जनक । दहण दुख, समुद सुख ॥ अवधपत, सरस सत ।
कमळकर, समर हर ॥ ३० २८. धांनंख-धारी-धनुषधारी। पै-चरण। नीत-चारी-नीति पर चलने वाला। सींध
(सिन्धु) समुद्र । बाताद-(वात+अद-पवनाशनसर्प शेषनाग) लक्ष्मण । जांनंकराजा जनक । जामात-दामाद । जोई-जो, वह। संभार-स्मरण कर । सोई-वही, उसी। रेवंस (रवि-वंश)-सूर्यवंश। सारंगपाणं (सारंगपाणि)-सारंग नाम धनुष धारण करने वाले, विष्णु, श्री रामचन्द्र । जीहा-जिव्हा। जपणं-जप कर,
भजन कर। २६. हंस-इस छंदका दूसरा नाम पंक्ति भी है। झोड़-प्रपंच । ततीजे-तजिये। वदेही
कहते हैं। सिहाई-सहायक । राघवराई-श्री रामचन्द्र । पै-पद । उध-उद्धार । ३०. जमक-इस छंदका दूसरा नाम करता भी है। धनक-धनुष । जनक-पिता । दहण
जलाने वाला। समुद (समुद्र)-सागर। अवधपत्त (अयोध्यापति)-श्री रामचन्द्र । कमळ कर-कमल स्वरूप हाथ । समर-युद्ध ।
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