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रघुवरजसप्रकास अथ खड़ाखर छंद गायत्री
दोय मगण सेखा, तिलक सगण दु, रगण दोय । वीजोहा दुजबर करण, सौ चऊरसा होय ॥ ३१
छंद सेखा (म.म.) राघौजी जौ गावौ, प्राझी लच्छी पावौ । संतां कारी साता, देखी दीनां दाता ॥ ३२
छंद तिलका (स.स.) रघुनाथ रटौ, क्रत हीण कटौ। कवसल्ल सुतं, दिननाथ दुतं । तन स्यांम सुभं, घण रूप लुभं । कट पीत पटं, छज ओप छटं॥ कवि तं किसना', रट सौ रसना ॥ ३३ - छंद विजोहा (र.र.) नाम है रांमको, ओक आरामको । साच राघौ कथा, वांण दूजी व्रथा ॥ ३४
३१. खड़ाकर-षडाक्षर, छ अक्षर । गायत्री-छ वर्णों की एक वर्ण-वृत्ति जिसके कुल ६४
भेद होते हैं। उनमेंसे कुछका उल्लेख र स्थकर्ताने भी किया है। दुजबर-चार लघु
मात्रा । करण-दो दीर्घ मात्रा। ३२. प्राझी-बहुत, अपार । लच्छी-लक्ष्मी । कारी-करने वाला । साता-सुख । ३३. क्रत-कार्य, काम। हीण-तुच्छ, भद्दा। कटौ-काट डालो। कवसल्ल-कौसल्या ।
सुतं-पुत्र । दिननाथ-सूर्य । दुतं-(धुति) कांति, दीप्ति । तन-शरीर । सुभं-शुभ । घण-(धन) बादल । लुभं-लोभाय, मान करने वाला। कट-(कटि) कमर । पीतपीला। पट-वस्त्र । छज-शोभा, शोभा देता है। प्रोप-कांति, दीप्ति । छटं-(छटा)
बिजली। रसना-जिव्हा, जीभ ।। ३४. विजोहा-विमोहा नाम ६ वर्णका छंद जिसके अन्य नाम जोहा, द्वियोधा, विज्जोदा भी
मिलते हैं। प्रोक-घर। साच-सत्य । राघौ-राम। वांण-वाणी, शब्द । वथाव्यर्थ ।
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