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________________ १२२ | रघुवरजसप्रकास छंद चऊरस (ल.ल.ल.ल.ग.ग ) रिख मखत्राता, दित कुळ घाता । सुभुज निघायौ, किरण उडायौ ॥ गवतम नारी, रज पय तारी । भव जय भाखी, सुर मुनि साखी ॥ ३५ दूहौ यगण संखनारी उभय, दोय तगण मंथांण । दुजगण प्रियगण मिळ दहू', मदनक छंद प्रमांण ॥ ३६ छंद संखनारी तथा विराज ( य.य.) ( तथा छंद रसावळा) रिखं साथ रांमं, गये कांम धांमं । सुरं तीन भूपं, तहां आय नूपं ॥ दसग्रीव बांणं, उभै जोर बांणं । बियं प्राय तत्थं, ठयं मंच जत्थं ॥ भुजं-बीस भल्लं, धनू काज हल्लं । कसै चाप केमं, जती चीत जेमं ॥ हजार दसानं, नूपं भंग मांनं । पड़े जोर पोचं, अनंगेस सोच ॥ ३५. रिख - ऋषि । मख-यज्ञ । त्राता-रक्षक । दित - दैत्य, असुर । घाता-संहारक, ध्वंशक | गवतम - गौतम । रज-धूलि । पय-चरण । भव- महादेव । भाखी - कही । साखी - साक्षी । ३६. दुजगण-चार लघु मात्राका नाम । प्रियगण - दो लघु मात्राका नाम । Jain Education International ३७. संखनारी - इसका दूसरा नाम सोमराजी भी है। रिखं ऋषि । दसग्रीव - रावण । ठयंहुआ। मंच - ऊँचा बना हुआ मंडप जिस पर बैठ कर सर्वसाधारण के सामने किसी भुजं बीस - रावण । भल्लं ठीक, चाप-धनुष । केमं- कैसे । जतीदसानं - रावण । मान-प्रतिष्ठा । प्रकारका कार्य किया जाय । जत्थं - यूथ झुण्ड । श्रेष्ठ । धनू - धनुष । काज-लिये । हल्ल - चला । ( यती) जितेन्द्रिय | चीत-चित, मन । जेमं- जसे पोचं- कम । प्रनंगेस - महादेव । सोचं भय । । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003420
Book TitleRaghuvarjasa Prakasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSitaram Lalas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages402
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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