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रघुवरजसप्रकास
अथ पताका लछण ।
दूही मुणिया भेळा मेरमें, गुरु लघु रूप गिनांन । जपौ जेण थळ जूजुवा, थपि पताक कह थांन ॥ ६६
अथ मात्रा पताका विध ।
कवित छप्पै अंक रीत उदिस्ट देहु, पूरण अंक बांमह । अंक पूरब ता अंक मेटि, क्रम क्रम विधि तामह ॥ एक अंक लोपंत, एक गुरु ग्यांन गिणीजै ।
दोय अंक ओपंत, दोय गुरु ग्यांन भणीजै ॥ त्रय लोप त्रि गुरु चव लोप चव, गुरु गियांन यम जांणिये। लिख्य मेर संख्य ध्वज मत सौ, जस राघव ध्वज जांणियै ॥ ६७
६६. मुणिया-कहे । भेळा-शामिल । गिनांन-ज्ञान । जूजुवा-पृथक्-पृथक् ।
थपि-स्थापित कर थान-स्थान । ६७. देहु-देकर । बामह-बायां । तामह-उसमें । लोपंत-लोप होते हैं।
प्रोपंत-शोभा देता है। चव-कहो। चव-चार ।
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