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________________ रघुवरजसप्रकास बोर छोड़ बावळा, खैर करमद बकायण । बीजा धव बट बैत, ईख सुरतर नारायण ॥ खरबूजा जग सह जाय रे, सौ असोक अंमर सदै । सैमळ सरीस तज आन सुण, दाख रांमफळ सेवदे ॥ २४९ अथ करपल्लव नाम छप्पै लछण आंगळियां करसं अरथ, जेण कवितरौ होय । आछी विध अह अक्खियो, करपल्लव कह सोय ।। २५० ____ अथ करपल्लव छप्पै कवित उदाहरण यं जे तैं न कियौ, करसु यं जण जण आगळ। यं न लिया हरि अगै, लेस नितप्रत गदगद गळ ।। कीध यं नह कदे, करसु तोपण विध दुख तन । यं न कियौ उण हेत, देस तौ यं जग दन दन । यम येम ए मन कीयौ अधम, मूरख यं जम मारसी। यं कियौ ज तैं अहनिस अवस, यं रघुनाथ उधारसी ॥ २५१ प्ररथ हे प्रांणी तें स्री रामचंद्र प्रागै हाथ नहीं जोड्या तौ तूं जणा जणा आगळ हाथ जोड़सी। जो तें दसी आंगळ प्रभु प्रागै मुखमें न लिया, तौ जगत आग। २४६. बोर-बदरी नामक वृक्ष या उसका फल । बावळा-मूर्ख । खैर-वृक्ष विशेष, कुशल । करमदा-वृक्ष विशेष, तथा उसका फल । बकायण-नीम जैसा एक वृक्ष । बीजा- दूसरा, एक वृक्ष विशेष या उसका फल । धव--वृक्ष विशेष । बट-बरगदका वृक्ष । बैत-बेंत, एक लता । ईख-देख, गन्ना, इक्षु । सुरतर-कल्पवृक्ष । प्रान-अन्य । दाख-द्राक्षा, कह । रामफळ-सरीफा, सीताफल । २५०. अह-अहि, शेषनाग । अक्खियो-कहा। २५१. यूं-ऐसे । तें-तूने। प्रागळ-अगाड़ी। अग-अगाड़ी। लेस-किंचित । नितप्रत-नित्य प्रति । गदगद गळ-गदगद कंठ। कीध-किया। कदे-कभी। तोपण-तो भी। हेतस्नेह । अवस-अवश्य । प्रांगळ-उंगुली । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003420
Book TitleRaghuvarjasa Prakasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSitaram Lalas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages402
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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