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रघुवरजसप्रकास
अथ चौटीबंध छप्पै लछण दूहौ
आद कहै सौ अंतमें, नांम गणत नरबाह । सिरै कवि बंधे सिखा, चौटीबंध चौटीबंध सराह ॥ २४६
अथ चौटीबंध छप्पै उदाहरण
सूरजपणौ सतेज, स्रवण अम्रत हिमकर सम । उर दाहक सम आग, तौर सुर-राज राज तिम ॥ सत हरचंद समान, प्रगट दरियाव अथघपण । सुर तर आस सपूर, जांण पारस सेवक जण ॥ रवि अमी आग इंद चंद हरि, दुध सुरतरमण आद ले ।
परभाव आठ निज कांम पर, एक रांम तन ऊकळे ॥ २४७
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अथ हीराबेधी छप्पै लछण दूहौ
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नारंगी संसार नीम, ऊबर कर अंह | करणा सुभ करतूत, झाल हर कदमां बह ॥
एक हीरौ विहरियां, दूजौ हीरौ थाय । हीराधी कवित जिम, दोय रथ दरसाय ॥ २४८ अथ होराबेधी छप्पै उदाहरण
२४६. सिर- श्रेष्ट । सराह - प्रशंसा कर, सराहना कर ।
२४७. सूरजपणौ -सूर्यत्व, सूर्यका गुण । स्त्रवण-श्रवण, टपकना । हिमकर-चंद्रमा । समसमान । दाहक - जलाने वाला । सुरराज- इन्द्र । सत - सत्य । हरचंद - हरिश्चंद्र, हरिचंदन | प्रथघपण - प्रथाहपन, गहरापन । श्रमी अमृत । सुरतर- कल्प वृक्ष । मणमरिण । श्रादादि । ऊभळ-प्रभाव दिखाता है ।
२४८. विहरियां - विदीर्ण करने पर, चीरने पर ।
२४६. अंबर - वृक्ष विशेष । बह- श्राम्र । करणा-वृक्ष विशेष व उसका फल । करतूत - कर्त्तव्य, काम | काल - पकड़ । कदमां-चरण, वृक्ष विशेष ।
बह-सहारा
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