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________________ रघुवरजसप्रकास [ १५ अथ नस्ट लछण विण लखियां मात्रा वरण, पूछे भेद सुपात । बुधबळसू अखु जेण विध, क्रमसौ नस्ट कहात ॥ ५४ अथ मात्रा नस्ट% कवित्त छप्प मात्रा नस्ट विधांन, कहत कविराज प्रमाणहु । सब लघु कर तिण सीस, पूरब जुग अंकां ठाणहु ॥ पैलौ पूछे भेद, अंक तिणरौ विलोप कर। तिण लोपै फिर रहै सेस, सौ अंक लोप धर ॥ पुरब जु अंक तिण अंकसू, पर मिळाय गुरु कर कहौ । औ मात्र निस्ट पिंगळ अखत, सुकवि किसन' यण विध लहौ ॥५५ ५४. विण लखियां-बिना समझे । सुपात-(सुपात्र) कवि । बुधबळ-बुद्धिबल । अखं-कहता हूँ *मात्रिक नष्ट ___ मात्रिक नष्ट में सूचीके पूरे-पूरे अंक स्थापित करो। छंदके पूर्णाङ्कसे प्रश्नाङ्क घटायो, शेष बचे उसके अनुसार दाहिनी ओरसे बांई ओरके जो जो अंक क्रमपूर्वक घट सकते हों उनको गुरु कर दो किन्तु जहां-जहां गुरु हों उनके आगेकी एक एक मात्रा मिटा दो। प्रश्न-बतायो ६ मात्रामोंमें ११वां भेद कैसा होगा ? रीति-पूर्णाङ्क १३में से ११ घटाये, शेष २ रहे । २ में से २ ही घट सकते हैं अत: २ को गुरु कर दिया और उसके प्रागेकी मात्रा मिटा दी। यथा-पूर्ण सूची-१ २ ३ ५८ १३ साधारण चिन्ह ।।।।।। उ०-15।।। यही ११वां भेद है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003420
Book TitleRaghuvarjasa Prakasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSitaram Lalas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages402
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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