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रघुवरजसप्रकास
। १५३ पुन अन्य विधि छंद धवल
(न.न.न.न.न.न.ग.) जिण पय सुरसरि अघहर सरित जनम है । करत मजन तिण जळ जन कटत अकम है ॥ बिबुध सकळ अहनिससु जपत सियबर है । तव नित 'किसन' रसन रघुबर सुरतर है ॥ १४६
दही सगण तगण यगणह भगण, सात गुरू पय पच्छ । अहपत खगपतसं अवै, संभू छंद सुलच्छ ॥ १५०
छंद शंभू (स.त.य.भ ७ ग. अथवा स.त.य.म.भ ग.) जग माथै राजत औ जेतै हरि एहौ आनं पा जापं । तितरै मां मानव तं त्रासे जमवाळी माने धू तापं ॥ 'किसनौ' यं आखत आचांके, बहनांमी भांमी बाबा रे । करणारौ बारध छै केसौ, अध नांमे संतां ऊधारै ॥ १५१
अथ वीस अखिर छंद वरणण जात ऋति
सगण जगण बे भगण सुण, रगण सगण ध्वज थाय ।
सकौ गीतिका गंडिका, वीस गुरू लघु पाय ॥ १५२ १४६. जिण-जिस । पय-चरण । सुरसरि-गंगा नदी । अघहर-पापोंको मिटाने वाली ।
सरित-नदी। मजन-स्नान । तिण-उस। कटत-कटते हैं। अक्रम-पाप । बिबुधदेवता। सकळ-सब। प्रहनिससु-रातदिनमें । सियबर-सीतापति, श्रीरामचंद्र
भगवान । तव-स्तवन कर। रसन-रसना, जीभ । सुरतर-कल्प-वृक्ष। १५०. पच्छ-पश्चात, बादमें । अहपत-शेषनाग । खगपतसं-गरुड़से । सुलच्छ-अच्छे लक्षण । १५१ माथै-ऊपर, पर। राजत-शोभा देता है। एहौ-ऐसा । पानपा (अनुप)-अनोखा ।
तितरे-तब तक । मां-मत । त्रासे-डरे। धू-निश्चय । तापं-भय । पाखतकहता है। बहनांमी-बहतसे नामों वाला, ईश्वर । भांमी-न्यौछावर, बलया। बाबाईश्वर । करणा (करुणा)-दया। बारध (वारिधि)-सागर। अध-ग्राधा । नामे
नामसे । ऊधार-उद्धार करता है। १५२. वीस अखिर छंद-विशत्याक्षरावत्ति । बीस अक्षरोंके छंदोंकी संज्ञा कृति मानी गई है
जिसके अनुसार प्रस्तार भेदसे १०४८५७६ तक भेद होते हैं। ध्वज-प्रथम एक लघु फिर एक गुरुका नाम । थाय-हो। गंडिका-एक वृत्तका नाम । पाय-चरण ।
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