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________________ २२ ] रघुवरजसप्रकास संख्या विपरीत ५, वरण संख्या विपरीतकौ प्रकारांतर ६, वरण संख्या स्थांन विपरीतकौ कड़ौट फेर ७, वरण संख्या स्थांन विपरीतकौ प्रकारांतर में प्रस्ट वरण प्रस्तारकौ तुकारथ लिखां छां । अथ वरण सुद्ध प्रस्तारका प्रकारांतरकौ लछण । चौपई धुर लघुके ऊरध गुरु धरौ, आगे अरघ पंत सम करौ ऊबरे सौ पाछै लघु वै वरण प्रकार यम सुध गावै अथ वरण स्थान विपरीत कड़ौट फेर प्रस्तार लछण । चौपई अंत गुरु हे लघु ऋणौ, जुगति अग्र ऊरध सम जांणौ । ऊबरे सौ पाछै गुरु लेखौ, वरण स्थान विपरीत विसेखौ || ७१ 1 अथ वरण स्थान विपरीतकौ प्रकारांतरकौ लछण । चौपई अंत लघु सिर गुरु परठीजै, रूप रध सम अग्र करीजै । ऊबरे सौ पाछै लघु लेखौ, प्रकारांतर उलट थळ पेखौ ॥ ७२ ॥ ७० अथ वरण संख्या विपरीत लघवादिकसू प्रस्तार चालै जींनै संख्या विपरीत कहीजै चौपई फेर - फिर । तुकारथ-पंक्तिका अर्थ | ७० धुर - प्रथम । ऊरध- ऊपर । पंत-पंक्ति । येम - इस प्रकार । ७१. हेठ - नीचे । विसेखौ - विशेष । ७२. सिर- ऊपर । परठीजै - रखिये । पेखौ - देखिए । द लघु तळ गुरु धरिये एम, तव उरध सम आगे तेम | ऊबरे सौ पाछै लघु ण, वरण संख्या विपरीत बखांण ॥ ७३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003420
Book TitleRaghuvarjasa Prakasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSitaram Lalas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages402
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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