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रघुवरजसप्रकास
छंद मंथांणी (त.त.) सीता रमा सोय, कीजै समं कोय । भाखौ परीभ्रम्म, राघौ महारंभ ॥ ३८
छंद मदनक (ल. ६) सहदत सत, दसरथ सुत । रिवकुळमण, रघुबर भण ॥ ३६
दूहौ
दोय जगण यक चरणमें, सौ मालती सुभाय। कीरत जिणमें किसन' किव, रट रट स्त्री रघुराय ॥ ४०
छंद मालती (ज.ज.) बडौ धन वेस, म खोय मुढेस । चवां चित चेत, पुणौ मत प्रेत ॥ भणां धन भाग, रघुब्बर राग ॥ ४१
अथ सप्त वरण छंद जात उस्णिक
रगण जगण पय अंत गुरु, समांनिका कह सोय । दुजबर भगण पयेण जिण, छंद सबासन होय ॥ ४२
द समांनिका (र.ज.ग.) रांम नाम गाव रे, पाय कंज धाव रे। जांनकीस जांण रे, वेस तं जवांण रे ॥ ४३
३८.
३८. रमा-लक्ष्मी। सोय-वड । सम-समान । कोर-किस । परीभ्रंम्म-(परब्रह्म परमात्मा ।
महारंभ-(महारम्भ) जिसके प्रारम्भ करने में महान यत्न करना पड़े महान, बड़ा। ३६. रिवकुळमण-रविकुलमणि। झण-कह । ४१. वडौ-महान, बड़ा। वेस-पायु, उम्र । म-मत । खोय-गमा, नष्ट कर । मुढेस-मूर्ख ।
चवां-कहता हूँ। चेत-सतर्क हो । पुणो-कहो । भणां-कहता हूँ। राग-प्रेम अनुराग । ४२. पय-चरण । सोय-वह । दुजवर-चार लघु मात्रा। पयेण-चरण । ४३. पाय-चरण। कंज-कमल । धाव-ध्यान कर । जानकीस-श्री रामचन्द्र भगवान ।
जांण-समझ। वेस-पायु, उम्र। जवांण-जवान, युवा ।
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