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२५.६ ]
रघुवरजसप्रकास
छजत बयण पय सरस मयण छब ।
कमळ नयण रव तरण कळ ॥ सकर धनख सरस रस सदन सख ।
नरख बदन जग भय नसत ॥ तन मन बय सम स जन सहज तूय ।
लछण भरथ अरिघण लसत ॥ तन घण बरण धरण दसरथ तण ।
सदय समन गरवत सहज ॥ तज तज अवर 'कसन' कव नत-प्रत ।
धर मन नहचळ गरड़-धज ॥ १६६ . अथ गीत भुजंगी लछण
बारा अखिर तुक श्रेक प्रत, यगण चार गुरु अंत । गीत भुजंगी तास गण, वरण छंद बुधवंत ॥ १७०
प्ररथ जा गीतरै तुक अक प्रत च्यार यगण होय । अंत गुरु होय, वरण छंद छ । मात्रा गिणती नहीं । जिण गीतनै भुजंगी कहै छै ।
अथ गीत भुजंगो उदाहरण
गीत महाराज औधेस आधार संतां, वार खारी रखै लाज बेखौ । हरी काज पै आसरा दीह हेके, लछीनाथ दी सेवगां लंक लेखौ॥ १६६. छजत-शोभा देता है। बयण-वचन । मयण-कामदेव । छब-कांति, दीप्ति ।
रव-सूर्य । तरण-तरुण । धनख-धनुष । सदन-घर । नरख-देख कर । बदन-मुख । नसत-नाश होता है। लछण-लक्ष्मण । अरिघण-शत्र घ्न । लसत-शोभा देते हैं। घण-बादल । धरण-धारण करने वाला । तण (तनय)-पुत्र । नत-प्रत-सदैव ।
नहचळ-निश्चल । गरड़-धज-गरुड़ध्वज, विष्णु। १७०. बारा-बारह । तास-उस । गण-समझ। बुधवंत-बुद्धिमान। गिणती-गिनती, संख्या। १७१. प्रौधेस (अवधेश)-दशरथ, श्री रामचन्द्र । खारी-भयंकर । बेखौ-देखो। लछीनाथ
(लक्ष्मीनाथ)-विष्णु।
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