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________________ रघुवरजसप्रकास [ २५५ रोळे लेण लंकरा निसंकरा विभाड़ राम । हाथां झोक रंकरा लंकरा देणहार ॥ १६६ अथ गीत हेकलवयण तथा मात्रारहित हंसगमण लछण धुर अठार उगणीस मत, दस सोळ बदसेण । दु लघु अंत सांणौर लघु, जपै खुड़द कवि जेण ॥ १६७ जिण छोटा सांणोरमें, गुरु अखिर नह होय । सरब लघु सोळह तुकां, हेकल वयण स कोय ॥ १६८ प्ररथ खुड़द लघु सांणोर तथा वेलिया सांणोर गीतरी सोळ ही तुकांमें गुरु अखिर अंक ही न होय । सोळ ही तुकांमें सरब लघु अखिर होय, जी गीतरौ नाम हेकलवयण कहीजै तथा मात्रारहित कहीजै। कठे'क दवाळा एकरा तुकांत प्रत गुरु श्रेक होय । इणनै धणकंठ सांणोर पिण कहीजै । अथ गीत हेकलवयण उदाहरण गीत जग जनक धनक हर हरण करण जय । चत नरमळ नहचळ चरण ॥ अकरण करण समरण अघ अणघट । सक रघुबर असरण सरण ॥ ललवर सधर अमर नर रख लज। महपत समरत हरत मळ ।। १६६. रोळे-युद्ध में । विभाड़-वीर । झोक-धन्य । रंकरा-गरीबका । देणहार-देने वाला। १६७. उगणीस-उन्नीस । मत-मात्रा। दस-तेरह । १६८. सोळ-सोलह । दसेण-तेरहसे । दु-दो। जेण-जिसको। अखिर-अक्षर । सकोय वह । कठे'क-कहीं पर । पिण-भी। १६६. जनक-पिता । धनक-धनुष । हर-महादेव । हरण-तोड़ने वाला। चत-चित्त । नरमळ-निर्मल । नहचळ-निश्चल, अटल । अघ-पाप । अणघट-अपार, नहीं मिटने वाला। लछ (लक्ष्मीवर)-विष्णु, श्री रामचन्द्र। सधर-दृढ़ । लज-लज्जा । महपत (महिपति)-राजा। समरत-स्मरण करते हैं । मळ-पाप, मैल । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003420
Book TitleRaghuvarjasa Prakasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSitaram Lalas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages402
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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