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रघुवरजसप्रकास दयाळ नूपाळ सिघाळ ब्रदाळ , अरेह अनाट अछेह अमंद ॥ रमीस प्रमीस हणे अघरीस , तवै जस आलम जेण तमाम । महा बळवांन अभंग महीप , रटां जन लाज रखै रघुराम ॥ ८६
अथ त्रंबकड़ा गीतको लछण
धुर मत्ता अठार घर, सोळह तुक सरबेण । गिण तिण दोय तुकंत गुर, जप त्रंबकड़ो जेण ॥ ८७
प्ररथ जी गीतकै पहली तुकमें मात्रा अठारा अर सारी ही तुकां मात्रा सौळा सोळा होय । तुकांत दोय गुरु अखिर होय जी गीतनै त्रंबकड़ो कहीजे । पैली तुक अठार होय अर लारली पनरैई तुको मात्रा सोळ सोळं होय ।
अथ त्रंबकड़ा गीत उदाहरण
गीत मुखहं ता भाख 'किसन' महमाहण , प्रभु नित भीड़ साच पखा रे । ग्राह जिसा अधमां दीन्ही गत , तोनं राघव कांय न तारै ॥
८६. सिघाळ-श्रेष्ठ । ब्रदाळ-बिरुदधारी। तवै-स्तुति करते हैं, वर्णन करते हैं। पालम
संसार । जेण-जिस । ८७. धुर-प्रथम । मत्ता-मात्रा। अठार-अठारह । सरबेण-सब, समस्त । लारली-पीछेकी ।
पनरैई-पनरहही। ८८. मुखहूंता-मुखसे । भाख-कह । महमाहण-ईश्वर । भीड़-सहायता, मदद । पख
पक्ष । जिसा-जैसा। दोन्ही-दी। गत-मोक्ष । तोन-तुझको। कांय न-क्यों नहीं।
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