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________________ । २११ रघुवरजसप्रकास दयाळ नूपाळ सिघाळ ब्रदाळ , अरेह अनाट अछेह अमंद ॥ रमीस प्रमीस हणे अघरीस , तवै जस आलम जेण तमाम । महा बळवांन अभंग महीप , रटां जन लाज रखै रघुराम ॥ ८६ अथ त्रंबकड़ा गीतको लछण धुर मत्ता अठार घर, सोळह तुक सरबेण । गिण तिण दोय तुकंत गुर, जप त्रंबकड़ो जेण ॥ ८७ प्ररथ जी गीतकै पहली तुकमें मात्रा अठारा अर सारी ही तुकां मात्रा सौळा सोळा होय । तुकांत दोय गुरु अखिर होय जी गीतनै त्रंबकड़ो कहीजे । पैली तुक अठार होय अर लारली पनरैई तुको मात्रा सोळ सोळं होय । अथ त्रंबकड़ा गीत उदाहरण गीत मुखहं ता भाख 'किसन' महमाहण , प्रभु नित भीड़ साच पखा रे । ग्राह जिसा अधमां दीन्ही गत , तोनं राघव कांय न तारै ॥ ८६. सिघाळ-श्रेष्ठ । ब्रदाळ-बिरुदधारी। तवै-स्तुति करते हैं, वर्णन करते हैं। पालम संसार । जेण-जिस । ८७. धुर-प्रथम । मत्ता-मात्रा। अठार-अठारह । सरबेण-सब, समस्त । लारली-पीछेकी । पनरैई-पनरहही। ८८. मुखहूंता-मुखसे । भाख-कह । महमाहण-ईश्वर । भीड़-सहायता, मदद । पख पक्ष । जिसा-जैसा। दोन्ही-दी। गत-मोक्ष । तोन-तुझको। कांय न-क्यों नहीं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003420
Book TitleRaghuvarjasa Prakasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSitaram Lalas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages402
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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