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रघुवरजसप्रकास अथ वंकगीत वरण छंद लछण
दूहौ च्यार जगणकी एक तुक, वरण छंद निरधार । चौ तुक मोती दाम मिळ, वंक गीत सु विचार ॥ ८५
प्ररथ
जी गीतरी एक तुकमें च्यार जगण होय, च्यार ही तुकमें बार बारै अखिर होय । तुक प्रत च्यार जगण होय । अंत लघु होय । मोतीदांम छंदकी च्यार तुकको एक दूहौ होय, जीनै वंकनांमा गीत कहीजै ।
अथ बंक गीत उदाहरण
गीत न रूप न रेख न रंग न राग , अपार न पार निधार अधार । अलेख अदेख अतेख अभेख , अतारस तार सुसार असार । अरेस असेस दहेस अभंग , धरेस सुरेस नरेस सधीर । अरोड़ अमोड़ अवीह अलार , निबाह अथाह चटै कुळ नीर । सनीत सकीत सजीत सराह , समाथ तिराय गिरंद समंद ।
८५. बार-बारह । अखिर-अक्षर । प्रत-प्रति । ८६. निधार-आधारहीन । धरेस-शेषनाग, पर्वत । सुरेस-इन्द्र। नरेस-राजा। अरोड़
शक्तिशाली। अमोड़-नहीं मुड़ने वाला। प्रवीह-निडर, निर्भय । समाथ-समर्थ । गिरंद-पर्वत । समंद-समुद्र ।
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