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________________ २१० ] रघुवरजसप्रकास अथ वंकगीत वरण छंद लछण दूहौ च्यार जगणकी एक तुक, वरण छंद निरधार । चौ तुक मोती दाम मिळ, वंक गीत सु विचार ॥ ८५ प्ररथ जी गीतरी एक तुकमें च्यार जगण होय, च्यार ही तुकमें बार बारै अखिर होय । तुक प्रत च्यार जगण होय । अंत लघु होय । मोतीदांम छंदकी च्यार तुकको एक दूहौ होय, जीनै वंकनांमा गीत कहीजै । अथ बंक गीत उदाहरण गीत न रूप न रेख न रंग न राग , अपार न पार निधार अधार । अलेख अदेख अतेख अभेख , अतारस तार सुसार असार । अरेस असेस दहेस अभंग , धरेस सुरेस नरेस सधीर । अरोड़ अमोड़ अवीह अलार , निबाह अथाह चटै कुळ नीर । सनीत सकीत सजीत सराह , समाथ तिराय गिरंद समंद । ८५. बार-बारह । अखिर-अक्षर । प्रत-प्रति । ८६. निधार-आधारहीन । धरेस-शेषनाग, पर्वत । सुरेस-इन्द्र। नरेस-राजा। अरोड़ शक्तिशाली। अमोड़-नहीं मुड़ने वाला। प्रवीह-निडर, निर्भय । समाथ-समर्थ । गिरंद-पर्वत । समंद-समुद्र । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003420
Book TitleRaghuvarjasa Prakasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSitaram Lalas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages402
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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