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रघुवरजसप्रकास
अथ अकारादिक वकारांत अधिक मित्र अखरोट उदाहरण
अवधि नगररै ईसरा, एहा हाथ उदार । यण सरणागत वासतै, दीध लंक सुदतार ॥ ४२
सम अखरोट उदाहरण कवित्त जस कज करै झळ स वाज गजराज वडाळा । पह दे पीठ अफेर गहर रघुनाथ सिघाळा ॥ नपत रूप मघवांण,
अथ न्यून अखरोट । तसां वरसण द्रब अट्टळ । धमचा कां ढींचाळ डौळ खग झाट लखा दळ ॥ चौरंग उरस चाचर छिबै हर अज पूरण हं सरौ। महाराज रांम सम महपती दांन खाग कुण दूसरौ ॥ ४३
प्ररथ पैला दूहामें तौ वैण सगाई। बाद मध्य तुकांत तीन कही ज्यांनै हीज अधिक सम न्यून जांणजै ।१। दूजा दूहामें उतम मध्यमादिक च्यार प्रकार कही ।२। फेर नीसांणीमें सावरणी अख्यरांरी अखरोट कही सौ पैला दुहामें तौ प्रकारादि वकारांत कही सौ अधिक । पछै कवितरी पांच तुकांमें जकारादि णकारांत सम अखरोट कही, फेर छप्पैरी च्यार तुकमें तकारादि छकारांत न्यून वरण मित्र तथा वैण सगाई, तथा अखरोट कही सौ समझ लीज्यौ । दस प्रकार छै—ाद १ मध्य २ अंत ३ उतिम ४ मध्यम ५ अध्यम ६ अधमाधम ७ अधिक ८ सम 8 न्यून १० ।
इति दस वैण सगाई वरणण ।
४३. झळूस-जलसा। वाज-घोड़ा। गजराज-हाथी। वडाळा-बड़ा। पह (प्रभु)-राजा।
गहर-गंभीर । सिघाळा-श्रेष्ठ । मघवांण-इन्द्र । तसा-हाथों। वरसण-वर्षा करने वाला, दान देने वाला। अट्टळ-निरंतर । ढींचाळ-हाथी। चौरंग-युद्ध । उरसआसमान । चाचर-शिर । हर-महादेव । प्रज-ब्रह्मा। हंस-अभिलाषा। ज्यांनजिनको। हीज-ही।
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