SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 42
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सप्रकास [ १७ अथ मात्रा स्थान विपरीत कड़ौट फेर प्रस्तार लछण । दूहौ अंत गुरु तळ लघु धरौ, आगै पंत समांण । ऊबरे सौ गुरु लघु धरौ, पाछै एह प्रमाण ॥ ५७ अथ मात्रा स्थान विपरीतकौ प्रकारांतर । चौपई अंत निकट लघु सिर गुरु धरौ, अधर पंत सम अग्र विचारौ। ऊबरे सौ पाछै लघु आवै, कळा थांन विपरीत कहावै ॥ ५८ अथ मात्रा संख्या विपरीतको प्रकारांतर दोनू भेळा कहै छै । . चंद्रायणौ आद अंत लघु संनिध तळ गुरु आंणजै । जेम प्रकारांतर गुरु सिर लघु जांणजै॥ धुर सम पछ लघु गुरु लघू फिर कीजियै । संख्या बिहु प्रकार उलट्ट सुणी जियै ॥ ५६ वारता संख्या विपरीतका पाद लघुका अंतको लघु जीके नीचे गुरु करणौ । प्रागै उरध पंत, सम पंत, ऊबरे सौ लघु करणा । अथ मात्रा संख्या स्थान विपरोतको प्रकारांतर दोनू भेळा कहां छां । चंद्रायणौ अंत रेख तिण आद, हेठ गुरु अख्यजै । भल प्रकार गुरु अंत, सीस लघु भख्यजै॥ ५७. तळ-नीचे। पांत-पंक्ति । समांण-समान । एह-यह । ५९. संनिध-पास । धर-प्रथम । पछ-पश्चात् । ६०. हेठ-नीचे। अख्यज-कहिए । भख्यज-कहिए । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003420
Book TitleRaghuvarjasa Prakasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSitaram Lalas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages402
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy