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रघुवरजसप्रकास
अथ पयोधर नांम
अख्यर ३६ गुरु १२ लघु २४
दूहौ
मन दुख दाधा डौल मत, साधा जग तज साव । मानव भव भीता मिटण, गुण सीतावर गाव ॥ ६५
अथ चळ नांम
प्रख्यर ३७ गुरु ११ लघु २६
दूहौ
मत बहरौ कर मांन ।
सह रांचै जन सादियां, कीड़ी पग नेवर झणक, भणक सुखै भगवांन ॥ ६६
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अथ वांनर नांम
श्रख्यर ३८ गुरु १० लघु २८ दूहौ
रै चित व्रत द्रढ़ प्रेम रख, मूरत स्यांम मकार । मेल्ह सुरत नट वांस मैं, प्रगट वरत व्है पार ॥ ६७
अथ त्रिकळ नांम
प्रख्यर ३६ गुरु 8 लघु ३० दूहौ
केसव भजतौ हरख कर, मत कर आळस मूढ़ । जिण दीधौ मनखा जनम, गरभ कौल कर गूढ़ ॥ ६८
अथ मच्छ नांम
प्रख्यर ४० गुरु ८ लघु ३२ दू
चित जे मत व्है चळ विचळ, भज भज नहचळ भाय । कूक करै जि दिन कुटंब, स्त्रीवर करै सिहाय ॥ ६६
५. दाधा-दग्ध, जला हुआ । साव-स्वाद । भव-संसार । भीता भीति, डर, भय । ६६. सादियां - पुकार करने पर । बहरौ - बहरा । नेवर - पैरोंका आभूषण विशेष । झणक
ध्वनि । भणक - आवाज, शब्द ।
७. मूरत - मूर्ति । स्यांम - श्याम, श्रीकृष्ण । मकार - मध्य में । सुरत- ध्यान । वरत- वरत्र, चमड़े का बना मोटा रस्सा |
६८. मूढ़ - मूर्ख । दीधौ - दिया । मनखा जनम - मनुष्य जन्म । कौल-वादा, प्ररण। गूढ़-गुप्त । ६६. चळ विचळ - डांवाडोल । कूक-पुकार । स्त्रीवर - श्रीवर, विष्णु । सिहाय सहाय ।
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