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________________ रघुवरजस प्रकास अस्थ कुबंध गीतरै पै' ली तुक मात्रा चवदै । दूजी तुक मात्रा चवदै । तीजी तुक मात्रा छाईस । पै'ली दूजीसूं मिळ तुकंत गुरु । तीजी सारा ही दूहांरी अंतरी तुक मिळं । तीजी ने अंतरी अंत लघु । विचली अनुप्रासांरी तुक प्राठ, ज्यां में पैलोरी तुक तो मात्रा सोळं और सात ही तुकां प्रत मात्रा चवदै चवदै होय । अनुप्रासरी आठ ही तुकांरा मोहरा मिळ नै तुकंत लघु होय । यण प्रकार गीत कुबंध कही । श्रनुप्रासांरी तुक ग्राठ ज्यांमेंसूं च्यार घटती कहै जींने मुगटही अतरौ त्रकुटबंध मुकटबंधरै भेद छै । वजू दोनूंई एक छै, कांई तफावद नहीं । अथ गीत त्रकुटबंध उदाहरण गीत अवधेस लंका ऊपरै, धर कुरख धंखा जुध धरै । अट्ठार पदम कपेस घट, मेळ दळ महराज ॥ गत विसर त्रंबक गड़गड़ै । भारथ कपी र भड़े । Jain Education International [ २४६ भड़ अनड़ बडबड मुड़ जुध भड़ । दुजड़ पड़ झड़ बड़ड़ खित झड़ । दड़ड़ रत पड़ भ्रगुट दडदड़ । चड़ड़ ऊघड़ प्रगड चख म्रड | खड़ड़ नरहड खपर खड़खड़ । १५८. चवद - चौदह । बिचली-बीच में, मध्यकी । ज्यांमें- जिनमें । यण- इस । तफावत, तफावद - फर्क, अन्तर । १५६. कुरख - कोप | धंखा-इच्छा । पदम - गणित में सोलहवें स्थानकी संख्या । कपेस- बानर । घट-अपार । गत प्रकार, तरह। विसर - भयंकर, भयावह । त्रंबक -नगाड़ा | गड़गड़े-बजते हैं । भारथ-युद्ध । कपी-वानर । श्रसुर-राक्षस । भिड़े युद्ध करते हैं । भड़-योद्धा । श्ननड़-स्वतंत्र । बडबड-बड़े-बड़े । श्रमड़ नहीं मुड़ने वाले । दुजड़तलवार | झड़- प्रहार । बड़ड़-ध्वनि विशेष । खित- पृथ्वी । झड़-कट कर । दड़ड़द्रव पदार्थका तेज प्रवाह या ध्वनि । रत- रक्त, खून। भ्रगुट - शिर । हड़दड़-ध्वनि विशेष | खड़ड़-ध्वनि विशेष । खड़खड़-ध्वनि विशेष । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003420
Book TitleRaghuvarjasa Prakasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSitaram Lalas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages402
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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