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रघुवरजसप्रकास अथ मझ अखिरा छप्पै लछण
कवित अरथ बाहर लिखे, अखिर मझ विचार । और जठै प्रगटै अरथ, सौ मम अख्यर धार ॥ २३०
अथ मझ अखिरा छप्पै उदाहरण स्वाद मीठा कह किसौ १?, किसं मूरखनं कहजै २ ? । की कह भ्रात कनेठ ३ ?, नाम रेखा की लहजै ४ ? ॥ कहै धरानं किसं ५ ?, रंक किण नाम जितं कह ६ ? । मंदभाग की मुणै ७ ?, ठहै तारा किण ठामह ८ ? ॥
रघुनाथ भगौ की जनकघर ह ? , भल बुध किस भणी जियै १० ? । कवि किसन' कवित मझ अख्यिर कह , जस रघुनाथ जपीजियै ॥ २३१
अथ लघुनाळीक छप्पै लछण अखर अठारह चरण चव, बे चरणां बावीस । कवित लघु नाळीक कहि, बरणत सरब कवीस ॥ २३२
अथ लघुनालीक छप्प तिण मारी ताड़का, जिकण रिख मख रखवाळे । हण सबाह मारीच, पैज खित्रवट ध्रम पाळे ॥
२३०. जठ-जहां । प्रगट-प्रकट होता है। अख्यर-अक्षर । २३१. मीठ-मीठा। किसौ-कौनसा। किसं-क्या। की-क्या। कनेठ-कनिष्ठ । धरा
अवनी, पृथ्वी । जितूं-जीता। मंद भाग-प्रभाग्य । मुणे-कहते है। ठहै-ठहरते हैं।
ठांमह-स्थान । भगौ-तोड़ा। अख्यिर-अक्षर । नोट-१ मिश्रीको। २ अजाण । ३अनूज । ४ लकीर। ५ अवन । ६ मल्लको।
७ अभागी। ८ गयण । ६ धनख । १० सुमत । इनके मध्याक्षरके पढ़नेसे श्री जांनुकी
वल्लभाय नाम बनता है। २३२. अखर-प्रक्षर । त्रव-चार । बे-दो। २३३. तिण-जिस, उस । जिकण-जिस । रिख-ऋषि । मख-यज्ञ। रखवाळ-रक्षा की।
हण-मार कर। पंज-मर्यादा, नियम, आचरण । खित्रवट-क्षत्रियत्व, वीरता, शौर्य । ध्रम-धर्म । पाळे--पालन किया।
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