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________________ ३१६ ] रघुवरजसप्रकास प्ररथ __ वेलिया सांणोर गीतरा दूहा दूहा प्रत आद गाथौ होय । च्यार ही गीतरा दुहारै पाद च्यार गाथा होय । क्यूंक गाथारी चौथी तुकरा अखिरांरौ अाभास गीतरी पैली तुकमें होय । गाथौ नै गीत सांमिळ छै जिणसूं गीतरौ नांम गहाणी छ। मात्रा दंडक छंद छै । गहांणी तथा गाथारौ लछण पैली ग्रंथमें कह्यौ छै नै वेलिया सांणोर गीतरौ पण लछण कह्यौ छै जिणसू अठै लछण न कह्यौ छै। ___ अथ गीत गहांणो उदाहरण गीत नर नह ले हरि नाम, जड़िया जंजीर कौड़ अघ जीहा। नर ले राघव नाम, ज्यां सिर रांम अनुग्रह जाणे ॥ सिर ज्या जाण अनुग्रह स्रीवर, चरणकमळ चींतवण सचेत । पातक दहणतणौ गह पैंडौ, हरिहर कहणतणौ मन हेत ॥ सह पढियौ गुण सार न, नह पढियौ हेक नाम रघुनायक । पढ पसु नाम प्रकार, पेखौ जे मानवी पायौ ॥ पढ खट भाख संसक्रत पिंगळ, सुकवी वगौ समझ गुण सांम । प्रांणी रांम नाम विण पढियां, निज पढ पसु धरायौ नाम ॥ सुरसरी राघव सुजस, मंजण जिण कीध सुध चित मानव । तीरथ अड़सठ तेण, बोलै त लाभ ग्रह बासत ॥ बोलै बेद लाभ ग्रह बासत, तीरथ अड़सठ सुफळ तयार । निज मन हुलस सांप. जे नर, जस रघुबर सुरसरी मझार ॥ वदन सुरस ना वांणी, सिर लोयण उदर हाथ पग सहता। जस तिलक लख पै जळ, जुइ फिर राम पवितर जेण ॥ २८८. जड़िया-जटित किये। अघ-पाप। जीहा-जीभ । अनुग्रह-कृपा, दया। स्रीवर (श्रीवर) विष्णु, श्रीरामचंद्र। पातक-पाप। दहणतणी-जलाने वालेका । गहपकड़ । पैडौ-मार्ग, पीछा। कहणतणौ-कहनेका । पेखौ-देखो, देखिए । सुरसरी गंगा नदी। मंजण-स्नान । हुलस-प्रसन्न होकर, हर्षपूर्वक । सांपड़े-स्नान करते हैं। जे-जो, अगर, यदि । मझार-मध्य । लोयण-नेत्र। सहता-सहित । पै-चरण । पवितर-पवित्र । जेण-जिस । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003420
Book TitleRaghuvarjasa Prakasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSitaram Lalas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages402
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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