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________________ ३३४ ] रघुवरजसप्रकास अथ सिरखुली निसांणी उदाहरण निसांगी राघव सिफत बखांणी, सच्चे सायरां । आफताब दुनियांणी, दीद नगाहए | जिन्हां तज जुलमांणी, हक्क सराहियां । रुख चुगलक ब "जांनी, सिरदह सझियां ॥ परस लिया मद पांनी, दार जुनारदा | arita aगसांगी, लंक पनाहियां ॥ खळक तमांम रचांनी, छिनमें खानी खालकां । जपै सुकर जबांनी, कुदरत कौनदी || बंदु परवर सांनी, सीतासांइयां ॥ २३ अथ घग्घर निसांणी लछण दूहौ लछण संजुत आठ तुक, जोड़ त्रिभंगी छंद । अंत जगण बत्तीस मत, घग्घर प्रबंध || २४ ह अरथ त्रिभंगी छंदरौ लछण सोई घग्घर निसांणीरौ लछण छै । त्रिभंगी छंदरी आठ तुक सोई घग्घर निसांणी । तुक प्रेक प्रत मात्रा बतीस । च्यार विस्रांम । पै'लौ विस्रांम दस पर होवै । दूजौ विस्रांम मात्रा ग्राठ पर होवै । तीज विस्त्रांम मात्रा आठ पर होवै । चौथौ विस्रांम मात्रा छै पर होवै । अंत जगण होवे । सोई त्रिभंगी छंद, सोई घग्घर निसांणी । त्रिभंगीको तुकांत मिळ । घग्घर निसांणीका तुकांत क अखिर ऊपर मिळे सौ Jain Education International २३. सिफत - विशेषता, गुण । सायरां-कवियों । ग्राफताब - सूर्य । दुनियांणी- संसारका | दीद - देखादेखी, दर्शन । नगाहए ( निगाह ) - दृष्टि, नजर, कृपा, मेहरबानी । जिन्हां(जिना) परस्त्रीगमन | जुलमांणी - जुल्म, श्रत्याचार, हक्क, कर्तव्य । सराहियां - सराहना कीजिए । बभ्भीछण- विभीषरण | बगसांणी-प्रदान कर दी । दे दी । पनाहियां शरण में आने वाले, पनाह लेने वाले । खलक ( खल्क ) - मानव जाति, सब मनुष्य । खालकांईश्वर । जपै - प्रार्थना करते हैं । सुकर (शुक्र) - कृतज्ञता । परवर - पालन करने वाला । पालक, ईश्वर । सांनी - जोड़का, समान, दूसरा । सीतासांइयां - श्रीरामचंद्र भगवान । २४. लछण-लक्षण | संजुत-संयुक्त 1 मत मात्रा । श्रेह - यह । सोई - वही । और ग्रखिर ऊपर भेद छै । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003420
Book TitleRaghuvarjasa Prakasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSitaram Lalas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages402
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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