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________________ २२६ ] रघुवरजसप्रकास प्ररथ पैली तथा च्यार ही तुकांमें मात्रा आठ होवै, दोय गुरु अखिर तुकांत होवै। पै'ली तुकरौ आध सौ पांचमी तुक होवै। आवरत पद होवै। आवरत फेर पढणौ कहीजै, जी गी तकौ नाम लघु चितविलास कहीजै । पैली तुकरी छ मात्रा करने वीपसा करणौ, विचै जीकार संबोधन धरणौ । __ अथ गीत लघु चितविलास उदाहरण गीत घणनांमी जी घणनांमी, निज जोर परां घणनांमी । भुज लोक त्रिहूंपत भांमी, बिरदैत बहै धुर बांमी । जी घणनांमी ॥ बिरदाळौ जी बिरदाळी, दुज गाय पखी बिरदाळौ । सीताचौ सांम सिघाळौ, पौह सेवगरां प्रतपाळौ । जी बिरदाळौ ॥ रघुराजा जी रघुराजा, रणधीर बडौ रघुराजा । सुज तारण संत समाजा, लह बहियां राखण लाजा । जी रघुराजा ॥ हद हाथां जी हद हाथां, है लंक ववी हद हाथां । सत्र भंज जुधां समराथां, गुण राखण बिसुधा गाथां । जी हद हाथां ॥ ११० १०६. पै'ली-प्रथम। धरणौ-रखना। ११०. घणनांमी-ईश्वर । भामी-न्यौछावर, बलैया । बिरदैत-विरुदधारी, योद्धा, वीर । धुर-तरफ। बांमी-बायीं। बिरदाळो-विरुदधारी, यशस्वी। दुज (द्विज)-ब्राह्मण । पखी-पक्षी । सीताची-सीताका । साम-स्वामी, पति । सिधाळौ-श्रेष्ठ। पौह-प्रभ, राजा । सेवगरां-सेवकों । प्रतपाळौ-रक्षक । तारण-उद्धार करने वाला। हद-धन्य, धन्यवाद । लंक-लंका। ववी-दे दी, प्रदान की। सत्र-शत्रु । भंज-तोड़ कर । समराथांसमर्थो । गुण-यश । बिसुधा-पृथ्वी। गाथां-कथाओं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003420
Book TitleRaghuvarjasa Prakasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSitaram Lalas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages402
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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