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रघुवरजसप्रकास
[२२७
अथ गीत घोड़ादमौ लछण
दूहौ अट्ठारह मत पहल अख, सोळ मत्त तुक आंन । दाख गीत घोड़ादमौ, दु गुरु अंत तुक दांन ॥ १११
प्ररथ जी गीतकै पै'ली तुक मात्रा अठ्ठारा होय । दूजी सारी ही तुकां मात्रा सोळे होय । तुकांत दोय गुरु अखिर पावै, जिण गीतरौ नाम घोड़ादमौ कहीजै । घोड़ादमा नै त्रबंकड़ो एक छै। यण गौतमें सुध जथा छ ।
अथ गीत घोड़ादमौ उदाहरण
गीत
राघव गह पला कीर कह पै रज , सिला उडी जाणे जग सारौ । जीवन जगत कुटंब दिस जोवौं , पग धोवौ तौ नाव पधारौ ॥ पदमण रिख असमांन पहंती , पंखां विनां जिहांन पढीजै । केवट कुळ प्रतपाळ दयाकर , चरण पखाळ जिहाज चढीजै ॥ हिक छिन मांझ सुरगळ अहल्या , पूगी है फळ रूप रज पै सौ ।
१११. अठ्ठारह-अठारह । मत-मात्रा। पहल-प्रथम । अख-कह । सोळ-सोलह । मत्त
मात्रा । प्रान-अन्य । दाख-कह । ११२. गह-पकड़ कर । पला-अंचल । कीर-मल्लाह । पै-चरण, पांव । दिस-प्रोर, तरफ ।
पदमण-पद्मिनी। रिख-ऋषि । पहूंती-पहुँची। केवट-मल्लाह। प्रतपाळ-रक्षा, पालन-पोषण । पखाळ-धो कर। जिहाज-जहाज, नाव, नौका। हिक-एक । छिन क्षण। मांझल-मध्य, में।
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