SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 6
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सञ्चालकीय वक्तव्य राजस्थानी भाषामें इतिहास, धर्मशास्त्र, पुराण और कथा आदि अनेक विषयोंके साथ ही काव्यशास्त्रकी विशेष उन्नति हुई है, जिसके परिणाम-स्वरूप विभिन्न काव्य-शैलियोंका अनूठे रूप में विकास हुआ है। उदाहरणार्थ रास, रूपक, मङ्गल, वचनिका, वेलि, पवाड़ा, विलास, प्रकाश और सतसई आदि सहस्रों राजस्थानी रचनागोंको लिया जा सकता है। अनेक काव्य-ग्रन्थोंमें गीत, दूहा, नीसाणी, झूलणा, चौपाई, झमाळ आदि छन्दोंका प्रयोग भाव, भाषा एवं काव्य-कलाकी दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है। इस प्रकार राजस्थानी काव्योंकी विपुलताके आधार पर राजस्थानी काव्य-शास्त्र-सम्बन्धी ग्रन्थोंका निर्माण भी हुआ जिनमें रस, छन्द, अलङ्कार और नायक-नायिका-भेदादि विषयोंका विस्तृत एवं सम्यक् विवेचन प्राप्त होता है। चारण कवि किसनाजी आढ़ा रचित 'रघुवरजसप्रकास' राजस्थानी छन्दःशास्त्र-विषयक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है। ग्रन्थकर्त्ताने इसमें राजस्थानी काव्योंमें प्रयुक्त विभिन्न छन्दोंके लक्षण प्रस्तुत करते हुए स्वरचित उदाहरणोंके रूपमें भगवान् श्रीरामचन्द्रका सुयश गान भी किया है। राजस्थानी काव्य-शास्त्रके विद्वानों में 'रघुवरजसप्रकास'के प्रकाशनकी बहुत समय से प्रतीक्षा थी। राजस्थानके सुपरिचित साहित्यसेवी और वृहद् राजस्थानी शब्दकोशके कर्ता श्रीसीतारामजी लाळसने कुछ मास पूर्व हमें प्रस्तुत ग्रन्थकी प्रति बताई तो हमने 'राजस्थान पुरातन ग्रन्थमाला के लिए उपयोगी समझते हुए इसका प्रकाशन स्वीकार कर लिया। प्रसन्नताका विषय है कि यह ग्रन्थ प्रकाशित होकर काव्य-प्रेमियों के हाथोंमें पहुँच रहा है। श्रीसीतारामजी लाळसने सपरिश्रम इसका सम्पादन किया है और भूमिकामें सम्बद्ध विषयोंकी आवश्यक सूचनाएँ दी हैं, तदर्थ वह धन्यवादके पात्र हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003420
Book TitleRaghuvarjasa Prakasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSitaram Lalas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages402
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy