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________________ ६८ ] रघुवरजसप्रकास अथ विडाळ नांम अक्षर ४५ गुरु ३ लघु ४२ जिण हर सरजत नर जनम, सुजदी रसण समाथ । कर झटपट कवियण 'किसन', नितप्रत रट रघुनाथ ॥१०४ अथ सुनक नाम अख्यर ४६ गुरु २ लघु ४४ दूहौ परगट कट तट तड़त पट, सरस सघण तन स्यांम । गह भर समपण कनक गढ़, रहचण दस-सिर राम ॥१०५ अथ ऊंदर नाम अख्यर ४७ गुरु १ लघु ४६ राघव रट रट हरख कर, मट मट अघ दळ महत । जनम मरण भय हरण जन, कज भव हर रिख कहत ।। १०६ अथ सरप नाम अख्यर ४८ गुरु ० लघु ४८ हर रिण दस-सिर विजय हित, धर निज कर सर धनक। पढ़त 'किसन' किव सरण पय, जय रघुबर जग जनक ॥ १०७ १०४. 'सरजत-रचता है : रसण-जिह्वा, जीभ । समाथ-समर्थ । झटपट-शीघ्र । कवियण कविजन, कवि । नित प्रत-नित्य प्रति, सदैव । १०५. परगट-प्रकट । कट-कटि, कमर । तड़त-तड़िता, बिजली। पट-वस्त्र। कनक गढ़ लंका। रहचण-नाश करने वाला। दस सिर-दशानन । १०६. मट-मिटते हैं। अघ-पाप। दळ-समूह । महत-महान । कज-ब्रह्मा । भव महादेव । हर-हरि, विष्णु । रिख-ऋषि । कहत-कहते हैं । १०७. कर-हाथ । सर-बार । धनक-धनुष । जग-संसार । जनक-पिता । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003420
Book TitleRaghuvarjasa Prakasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSitaram Lalas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages402
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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