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रघुवरजसप्रकास
अथ विडाळ नांम अक्षर ४५ गुरु ३ लघु ४२
जिण हर सरजत नर जनम, सुजदी रसण समाथ । कर झटपट कवियण 'किसन', नितप्रत रट रघुनाथ ॥१०४
अथ सुनक नाम अख्यर ४६ गुरु २ लघु ४४
दूहौ परगट कट तट तड़त पट, सरस सघण तन स्यांम । गह भर समपण कनक गढ़, रहचण दस-सिर राम ॥१०५
अथ ऊंदर नाम अख्यर ४७ गुरु १ लघु ४६
राघव रट रट हरख कर, मट मट अघ दळ महत । जनम मरण भय हरण जन, कज भव हर रिख कहत ।। १०६
अथ सरप नाम अख्यर ४८ गुरु ० लघु ४८
हर रिण दस-सिर विजय हित, धर निज कर सर धनक। पढ़त 'किसन' किव सरण पय, जय रघुबर जग जनक ॥ १०७
१०४. 'सरजत-रचता है : रसण-जिह्वा, जीभ । समाथ-समर्थ । झटपट-शीघ्र । कवियण
कविजन, कवि । नित प्रत-नित्य प्रति, सदैव । १०५. परगट-प्रकट । कट-कटि, कमर । तड़त-तड़िता, बिजली। पट-वस्त्र। कनक गढ़
लंका। रहचण-नाश करने वाला। दस सिर-दशानन । १०६. मट-मिटते हैं। अघ-पाप। दळ-समूह । महत-महान । कज-ब्रह्मा । भव
महादेव । हर-हरि, विष्णु । रिख-ऋषि । कहत-कहते हैं । १०७. कर-हाथ । सर-बार । धनक-धनुष । जग-संसार । जनक-पिता ।
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