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________________ ६८ ] रघुवरजसप्रकास कमळबंध उदाहरण छप्पै कौसळ या सुख करण, नेत-बंध दसरथ नंदण । व्रत खित्रवट निरवहण, दुसट ताड़का निकंदण ॥ रिण सुबाह संघरण, असुर मारीच उडावण । रज पै अहल्या तरण, संत जम त्रास छुडावण ॥ व्रत जनक राख सीताबरण, धांनुखभंजण जटधरण । मुण 'किसन' सुजस रघु-बंस-मण, सीतापत असरण सरण ॥ २२७ नेत बंध दसरथ नंद। 3-व्रत रिवत्र वट निरवह ४- दुमट ताड़का निकंद १-कोसल्या सुरख कर anna-R ELErti-5 - 1212 सीतापत असरण सर PIEN. HIK HAPE-2 -0 १०-धानुरव भजणजट भार तजनक राव सीताबर ११-मुणकिमन सुजम रघुवंभम (- २२७. नेत-बंध-अपना निजका झंडा या ध्वजा रखने वाला, वीर। नंदण-पुत्र । व्रत-वृत, आचार । खित्रवट-क्षत्रियत्व, वीरता, शौर्य। निरवहण-वहन करने वाला, धारण करने वाला, निभाने वाला। निकंदण-संहार करने वाला, मारने वाला। रिणयुद्ध। संघरण-संहार करने वाला, मारने वाला। रज-धुलि। पै-चरण, पैर । तरण-उद्धार करने वाला। जम-यम, यमराज। त्रास-भय, डर। बत-प्रण। सीताबरण-सीतापति, श्रीरामचंद्र । धांनुख-धनुष । भंजण-तोड़ने वाला। जटधरणमहादेव । मुण-कह, वर्णन कर । रघु-वंस-मण-रघुवंशमरिण । सीतापत-सीतापति । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003420
Book TitleRaghuvarjasa Prakasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSitaram Lalas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages402
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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