________________
१५० ]
रघुवरजसप्रकास
अथ अठार वरण छंद, जात ध्रति
छ गुरु भगण मगणह सगण, मगण छंद मंजीर । र स ज ज फिर भगणह रगण, सौ चरचरी सधीर ॥ १३६
छंद मंजीर (६ ग.भ.म.स.म. अथवा म.म.भ.म स.म.) हाथी कीड़ी कांटे हेकण सौ तोल, जग जाणे सारौ। रंकां रावां जोड़े राखत, तैं कीजै निबळां निस्तारौ।। दीनां लंका जे हाथां न कजै दीधा जग सारौ जाणे । वेदां भेदां धाता वीठळ वारंवार रटै वाखाणे ॥ १४०
छंद चरचरी (र.स.ज.ज.भ.र.) देव राघव दीन पाळ दयाळ बंछित दायकं । नाग मानव देव नाम रटंत सीय सुनायकं ॥ माथ-पंच दुयेण भंज अगंज भूप महाबळ । वंद तं 'किसनेस' पात सुपाय जे जन वाछळ ॥ १४१
पड़े यगण खट चरणा प्रत, क्रीड़ा छंद कहाय । 'किसन' सुकव अहपत कहै, रट कीरत रघुराय ॥ १४२
१३६. अठारै वरण छंद-अष्टदशाक्षरावति । जात ध्रति-अठारह वर्णोके वृत्तोंकी संज्ञा
जिसमें हरिणी प्लता, चित्रलेखा, मंजीर आदि हैं और जिनकी संख्या २६२१४४ तक
है । चरचरी-एक छंद। इस छंदका दूसरा नाम चंचरी भी है। १४०. कांटे-तराजुमें, तकड़ीमें । हेकण-एक । सारौ-सब। रंकां-गरीबां। रावां
राजाओं। जोड़े-समान, बराबर। निस्तारौ-उद्धार । धाता-ब्रह्मा। वीठळ
विष्णु, ईश्वर । १४१. वंछित-इच्छित, अभीष्ट । दायकं-देने वाला। रटंत-रटते हैं। सीय सुनायक-सीता
पति श्री रामचंद्र भगवान। माथ-पंच-रावण । दुयेण-दो, यहां दो हाथोंसे तात्पर्य है। भंज-नाश किया । पात-कवि । सुपाय-सदर, श्रेष्ठ। जे-जो, जिसके ।
जन-भक्त । वाछळं-वात्सल्य । १४२. प्रत-प्रति, हर एक । क्रीडा छंद-इस छंदका दूसरा नाम महामोदकारी भी है।
प्रहपत (अहिपति)-शेषनाग ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org