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रघुवरजसप्रकास
दूहौ
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मगण भगरण फिर नगरण मुणि, तगण दोय फिर जोय करण एक अहराज कहि, मंदाक्रांता होय ॥ १३५
छंद मंदाक्रांता ( म.भ.न.त.त. ग.ग.) ४, ६, ७ सीता सीतारमण हरही नेक संताप संतां ।
भेख लज्जा समंतां ॥ भाग छै जेण मोटौ ।
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मता मता सकुळ घर ही
माधौ माधौ रस जप ही
त्यांरा दासां सरब सुख रे
हौ
[ १४६
थरौ नांहि तोटौ ॥ १३६
नगरण सगण मगरणह रगण, सगण एक ध्वज अंत | खगपत सुख हपत अखै, हरिणी छंद कहंत ॥ १३७
छंद हरिणी ( न.स.म.र.म.ल.ग.) भजन करणौ जीहा भूपणं पती रघु भूपरौ । बिरद धरणौ बँका रे कोट भांग सरूपरौ ॥ सुजन वित देखौ लेखौ कीत गाथ सधीर है । हरण दुख व्है संतां मात-पिता रघुबीर है ॥ १३८ १३५. मुणि- कह कर करण- दो दीर्घ मात्राका नाम । प्रहराज (अहिराज ) - शेषनाग । १३६. सीतारमण - सीता के साथ रमण करने वाला, श्री रामचंद्र भगवान । हरही-दूर करेगा, मिटायेगा । नेक-थोड़ा । संताप - पीड़ा, कष्ट । माधौ - माधव, विष्णु, श्री रामचंद्र | रसण - (रसना) जिव्हा, जीभ । भाग - भाग्य | छँ - है । जेण- जिसका, जिससे । मोटो - महान । त्यांरा- उनके | दासां भक्तों । श्राथ रौ (अर्थस्य ) - धनका । नांहि-नहीं। तोटौ प्रभाव, कमी ।
१३७. ध्वज - प्रथम लघु फिर दीर्घ मात्राका नाम । खगपत ( खगपति ) - गरुड़ । ( हिपति ) - शेषनाग | कहंत - कहते हैं, कहा जाता है ।
१३८. जीहा - जिव्हा, जीभ । भूपां पती - (भूपपति) सम्राट । रघु - रघुवंशी । भूपरौ - राजाका । बिरद ( विरुद ) - यश | धरणौ धारण करने वाला । बंका-बांकुरे, महान । कोट ( कोटि ) - करोड़ । भांण । भानु ) - सूर्य । सरूपरौ - स्वरूपका । सुजन-सजन, स्वजन । वित- द्रव्य, धन-दौलत । देणौ - देने वाला । लेणी-लेने वाला । क्रीत - कीर्ति । गाथ - कथा । सधीर-धैर्यवान, दृढ़ ।
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