SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 276
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ रघुवरजसप्रकास [ २५१ जग वय मयंद गवाखसा । लड़ हेक भंजण लाखसा । इर अतर लसकर समर ओर । सधर धण सुर कंवर दससिर । सुकर धर सर बजर ससतर । गहर हर वह पथर तर गिर । वहर सिर कर देह वाखर । पहर चौसर सुवर अपछर । सधर रघुबर दुछर वह सर । असुर दससिर दुसर छिद उर, मछर भज अमांन ॥ क्रोधाळ लिछमण कामरौं, रिण लडै बंधव रामरौ । तिण मेघनाद विभाड़ ताखै, पाड़ असहां पूज ॥ कुंभेण दससिर क्रांमती। पह भंज हेकल रघुपती। रिण कुंभ सुरघण मार रावण । कठण खळ जण कीध कणकण । विभीखण जग चरण वासण । सरणहित तिण लंक समपण । ऊछव घण सिय तरण आणण । प्रसण हण मन महण द्रढ पण । १५६. चौसर-पुष्पहार । अपछर-अप्सरा ! दछर-वीर। मछर-गर्व। क्रोधाळ-क्रुद्ध । लिछमण-लक्ष्मण । बंधव-भाई। विभाड़-संहार कर, मार कर। ताखै-वीर । असहां-शत्रुओं। पूज-समूह । पह (प्रभु)-योद्धा, राजा। कणकण-तितर-बितर । ऊछव-उमंग । घण-बहुत। सिय-सीता। प्रांणण (आनन)-मुख । प्रसण-शत्रु । महण (महारर्णव)-समुद्र । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003420
Book TitleRaghuvarjasa Prakasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSitaram Lalas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages402
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy