SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 166
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ रघुवरजसप्रकास [ १४१ धनु सायक पांण सुभायक धारै । रघुनायक लायक संतसु तारै ॥ १०८ दूहौ छंद भुजंगी पर लघु, श्रेक वधै सौ कंद । पंकावळि यक गुरु छ लघु, बिभगण कहत फुणिंद ॥ १०६ छंद कंद ( य.य.य.य.ल.) नरांनाथ सीतापती राम जै नाम । सत्रां भंज लाखां भुजां पांण संग्राम ॥ महाबाह बांणावळी कण जे मीढ । अखां रांम छै राम राजेस ही ईढ ॥ ११० छंद पंकावली (ग.छ.ल.भ.भ.) धांनुख-धर कर पंकज धारत । सेवग अगणत काज सुधारत ॥ जांमण मरणतणौ भय भंजण । राघव समर सिया मन रंजण ॥ १११ दूही सम पद दुज सगण जगण, करण अंत निरधार । दुज भगण रगण यगण, विसम अजास विचार ॥ ११२ १०८. धनु-धनुष । सायक-बांण। पांण (पाणि)-हाथ। सुभायक-शोभा देने वाला, सुंदर । तार-उद्धार करते हैं। १०६. बि (द्वि)-दो । फुणिद-शेषनाग । ११०. भंज-नाश करता है, नाश करने वाला । महाबाह-महाबाहु, बड़ी-बड़ी भुजाओं वाला, समर्थ। बांणावळी-धनुर्विद्यामें प्रवीण। कंण-कौन । जे-जिसके। मीढ-समान, समानता। अखां-कहता हूँ। ईढ-प्रतिस्पर्द्धा । १११. धांनुख-धर-धनुषधारी। कर-हाथ । पंकज-कमल । अगणत (अगणित)-अपार । काज-कार्य । सुधारत-सुधारता है। जांमण-जन्म । भंजण-मिटाने वाला । समर युद्ध । सिया-सीता। रंजण-प्रसन्न करने वाला। ११२. दुज-चार लघु मात्राका नाम । करण-दो दीर्घ मात्राका नाम । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003420
Book TitleRaghuvarjasa Prakasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSitaram Lalas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages402
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy