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________________ रघुवरजसप्रकास [ ११५ अथ वरण व्रत (वृत) वरणण दूहा स्री गणनायक सारदा, दीजै उकत दराज । वरण व्रति 'किसनौ' वदै, जस राघव महराज ॥ १ वरण व्रति सौ दोय विधि, कहै वडा कवि कत्थ । वरणछंद उपउँद वद, स्री धर सुजस समथ्थ ॥ २ लेखव वरण छवीस लग, वरण धुंद सौ वेस । आखर छविसां ऊपरां, सौ उपचंद सरेस ।। ३ अथ एक वरणसूं लगाय छवीस वरण तांई छंदारी जातरा नाम वरणण । कवित छप्पै उक्ता अत्युक्ताह अखंत, मध्या, वखांणत । वळे प्रतिस्ठा वेस, जगत सु प्रतिस्ठा जाणत ॥ गायत्री ऊसणीक अनुस्टप, व्रहती पंगत । त्रिस्टुप जगती तवां, अती जगती सकरी मत । अत सकरी अस्टती यिस्टि अख ध्रति । अति ध्रती, क्रती प्रक्रतीय । आक्रति, विक्रति, फिर संसक्रती । अतक्रति, उतक्रति, हरि भजीय ॥४ दूहौ यकसं वरण छवीस लग, बरण छंदकी जात । क्रीत रांम वरणण कियां, सुकवि सुमुख सरसात ॥ ५ नोट --छप्पयमें पाए हुए छंदोंके शुद्ध संस्कृत नाम १ उक्था, २ अत्युक्था, ३ मघ्या, ४ प्रतिष्ठा, ५ सुप्रतिष्ठा, ६ गायत्री, ७ उष्णिक, ८ अनुष्टुप, ६ बृहति, १० पंक्ति, ११ त्रिष्टुप, १२ जगती, १३ अति जगती, १४ शक्वीर, १५ अति शक्वरी, १६ अत्यष्ठि, १७ अष्ठि, १८ धृति, १६ अति धृति, २० कृति, २१ प्रकृति, २२ प्राकृति, २३ विकृति, २४ संस्कृति, २५ उत्कृति, २६ अतिकृति। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003420
Book TitleRaghuvarjasa Prakasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSitaram Lalas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages402
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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