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________________ ३२२ ] रघुवरजस प्रकास अथ गीत रूप तथा दुतीय गजगत लछण गीत च्यार दूहांके च्यार ही, धुर प्रकरणी दवाळ | ग्यार मत धुर नव दुती, ग्यारह नव क्रम भाळ ॥ २६६ अठाईस मत अंत गुरु, न दवाळा होय । रूपग जस रघुनाथ रट, समझौ गज गत सोय ॥ २६७ बीस छ मता अंत लघु, छजै भाखड़ी छंद । आठ वीस मत अंत गुरु, गजगत से प्रबंध ॥ २६८ अरथ । कणीरौ दवाळौ भाखड़ोरै तौ दवाळां सारां प्रत श्रेक ही होय । हर गजगतरै दवाळा दवाळा प्रत प्रकणीरौ दवाळी नवीन नवीन होय । क तौ गजगत नै भाखड़ीरौ यौ भेद होय । दूजौ भेद भाखड़ीरै दूजा भाखड़ीरा दवाळां मात्रा छाईस अंत लघु होय । गजगतरै दुजा दवाळांरी तुक नेक प्रत मात्रा अठाईस ने अंत गुरु होय । प्रतरौ भेद होय दूजां गजगत भाखड़ी श्रेक तरैरा रूपग छै । प्रकणीरी मात्रा नव नव होय । सवाय रैकार तथा जीकार अंत होय । तुक पै' ली तीजीरै प्रमांण वैली तुक मात्रा अग्यारै, दूजी तुक मात्रा नव, तीजी तुक मात्रा प्रग्यारै, चौथी तुक मात्रा नव, अंत गुरु होय । दूजा दवाळां प्रत तुक मात्रा ठावीस सारी तुकां होय । अंत गुरु होय । ई प्रकार रूपग गजगत कहीजै । आगे गजगत गीत न कह्यौ छै, भूल गया जींसूं पछै कह्यौ छै । गीत गजगतरी प्रांकणी तो भाखड़ीरीज होवै । भाखड़ीरै तुक नेक प्रत मात्रा छबीस हो । अंत लघु होय । गजगतरै तुक नेक प्रत मात्रा प्रठावीस होय, अंत गुरु होय तथा भाखड़ीरी तुकरै अंत क स ना य गुरु अखर धरजै सोई गीत गजगत रूपग छै । Jain Education International २६. धुर - प्रथम । दवाळ - गीत छंदके चार चरणों का समूह । दुती - दूसरी । २६७ श्रांन - दूसरा । सोय-वह । २६८. यौ-यह । रे कार-रे तू शब्द कह कर पुकारनेका शब्द । लघु रूपसे पुकारने का शब्द, संबोधन शब्द | जीकार - जी, सम्मानपूर्वक पुकारनेका शब्द । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003420
Book TitleRaghuvarjasa Prakasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSitaram Lalas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages402
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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