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रघुवरजसप्रकास
[ ८५ अथ गद्य छंद लछण विध
दूहौ गद्य पद्य बे जगतमें, जांण छंदकी जात। सम पद पद्य सराहजै, छटक गद्य छ जात ॥१६१ दवावैत फिर बात दख, जुगत वचनका जांण । औछ अधक तुक असम श्रे, बीदग गद्य बखांण ॥ १६२
अथ दवावैत माहाराजा दसरथके घर रामचंद्र जनम लिया। जिस दिन सै आसरू नै ऊदेग देवतं नै हरख किया। विसवामित्र मख-रख्याके काज अवधेसतै जाच लिये । माहाराजा दसरथ उसी बखत तईनाथ किये। सात रोज निराहार एकासण सनद्ध रहै। रिखराजका जिगकी रछयाकाज रजवाटका बिरद भुजदंडं गहे । सुबाहूकं बांणसे छेद जमराजके भेट पुंहुचाया। मारीचके ताई वाय बांणते मार उडाया । रज पायसे तारी गौतमकी घरणी। खंडपरसका कोदंड खंड कर जांनुकी परणी ।
१६१. सम पद-यहां छंद-शास्त्रानुसार छंदोंके नियममें बंधे हुए शब्द व वाक्य । सराहजै
सराहना कीजिए। छूटक-जिन पदोंमें छंद-शास्त्रानुसार नियम न हो, गद्य । १६२. औछ-कम । अधक-अधिक । बीदग-विदग्ध, पंडित, कवि ।। १९३. प्रासरू-असुर, राक्षस । ऊदेग-उद्वेग, चिता। मरख-रख्या-यज्ञकी रक्षा । जाच लिये
मांग लिये । तईनाथ-तैनात, किसी काम पर लगाया या नियक्त । किया हया। निराहार-बिना भोजन । एकासण-एक ही प्रासन या बैठक । सनद्ध-(संनद्ध) कटिबद्ध। जिग-यज्ञ ! रछया-रक्षा । रजवाट-क्षत्रियत्व, वीरता । बिरद-बिरुद। गहेधारण किये। तांई-लिये। रज-धुलि। पाय-चरण। घरणी-स्त्री, पत्नी। खंडपरसका-खंडपरशु महादेवका। कोदंड-धनुष ।
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