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षड्दर्शन समुच्चय भाग - २, श्लोक, ४८-४९, जैनदर्शन
इत्यादि कोई भी अवयव प्रकट हुए नहीं होते है। फिर भी चेतनावाला होता है। इस तरह से पानी भी अण्डे में रहे हुए प्रवाहि की तरह सचेतन ही है
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अनुमान प्रयोग : “पानी सचेतन है । क्योंकि शस्त्र से उपहत हुए बिना रहा द्रव्य ( प्रवाहि) है । जैसे कि हाथी के शरीर के उपादानभूत कलल ।"
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उपरोक्त आपके अनुमान में "प्रस्त्रवणादि" जो हेतु दिया था, उसकी " शस्त्रानुपहतत्वे सति" विशेषण से व्यावृत्ति होती है। क्योंकि मूत्र आदि बहनेवाले पदार्थ मूत्राशय इत्यादि से उपहत होते है। इसलिए वे प्रवाह होने पर भी सजीव नहीं है ।
तथा "पानी सचेतन है । क्योंकि शस्त्र से अनुपहत प्रवाही है । जैसे कि, अण्डे की मध्य में रहा हुआ कलल अथवा पहले की तरह पानी को जीव के शरीर के रुप में सिद्ध करने से वह स्वयंमेव सचेनत सिद्ध होता है ।"
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"कोई-कोई बर्फ इत्यादि सचेतन है । क्योंकि अप्काय है । जैसे अन्य पानी ।" तथा "कोई कोई (जमीन में से निकलता ) पानी सचेतन है । क्योंकि जमीन को खोदने से स्वाभाविक कला है । जैसे कि, जमीन खोदने से नीकलता मेंढक ।"
"बादलो में से बरसता जल सचेतन है । क्योंकि बादल मिल जाने से स्वत: ( अपनेआप ) तैयार होके बरसते है । जैसे कि, बादलो में से बरसती मछलीयां ।"
ठंडी मोंसम में बहोत ठंडी पडे तब थोडे पानीवाले डबरे में थोडी उष्मा उत्पन्न होती है। उससे ज्यादा पानीवाले तालाब इत्यादि में ज्यादा उष्मा उत्पन्न होती है और उससे भी ज्यादा पानीवाली नदी इत्यादि में बहोत ज्यादा उष्मा उत्पन्न होती है । वह उष्मा (गरमी) जीव के कारण ही उत्पन्न होती है । जैसे कम आदमीओ के शरीर मिले तो कम उससे ज्यादा मिले तो ज्यादा उससे ज्यादा मिले तो ज्यादा उष्मा उत्पन्न होती है, वह जीवहेतुक है वैसे पानी में उत्पन्न होती उष्मा भी जीवहेतुक है।
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अनुमान प्रयोग : “शीतकाल में पानी में उष्णस्पर्शवाली वस्तु से उत्पन्न हुआ उष्णस्पर्श होता है । क्योंकि उष्णस्पर्श है । जैसे कि, मनुष्य से शरीर के उष्णस्पर्श ।"
पानी में उष्णस्पर्श सहज नहीं है। क्योंकि "पानी में शीतस्पर्श ही है ।" यह वैशेषिको का वचन है ।
शीतकाल में बहोत ठंडी पडे तब सुबह में तालाब इत्यादि की पश्चिमदिशा में खडे होकर तालाब इत्यादि को देखा जाता है, तब तालाब के पानी में से बाष्प का समूह नीकलता दिखता है। वह भी जीवहेतुक ही है ।
अनुमान प्रयोग : " शीतकाल में पानी में बाष्प ( भाप ) उष्णस्पर्शवाली वस्तु से उत्पन्न होती है, क्योंकि बाष्प है । जैसे शीतकाल में शीतल (ठंडे ) पानी से भीगे हुई मनुष्य के शरीर की
बाष्प ।"
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