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निक्षेपयोजन
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उत्पन्न होते रहते हैं । इन समान आकार के प्रतिक्षण उत्पन्न होनेवाले पर्यायों के उत्पन्न करने की शक्ति अनुगामी द्रव्य में रहती है । यह शक्ति प्रत्येक द्रव्य में है । शक्ति और शक्तिमान का अभेद है, इसलिए शक्ति भी द्रव्य कही जाती है । यह शक्ति रूप द्रव्य प्रत्येक वस्तु में है । एक स्थान पर पडा हुआ घट अथवा लोह भी प्रतिक्षण नये नये पर्यायों को उत्पन्न करता है । एक ही घट जिस प्रकार नामरूप और स्थापना रूप है, इस प्रकार शक्तिरूप होने से द्रव्यरूप भी है । अतः द्रव्य के वस्तु होने में शंका नहीं हो सकती । अब सर्व वस्तु की भावात्मकता और समस्त जगत को नामादि चतुष्ट्यात्मक बताते हुए कहते है कि,
भावात्मकं च सर्वं परापरकार्य क्षणसन्तानात्मकस्यैव तस्यानुभवादिति चतुष्ट्यात्मकं जगदिति नामादिनयसमुदयवादः। (जैनतर्क भाषा )
अर्थ : समस्त वस्तु भावात्मक है अर्थात् पर्यायरूप है । प्रत्येक क्षण में होनेवाले पर अपर कार्यों की परम्परा के रूप में अर्थ का अनुभव होता है, इस कारण समस्त जगत नाम स्थापना- द्रव्य और भाव इन चारों के स्वरूप में है । यह नाम आदि नयों का समुदयवाद है ।
कहने का आशय यह है कि, जब भी अर्थ का अनुभव होता है तब किसी एक पर्याय के रूप में होता है । प्रत्येक अर्थ में नाम, आकार, द्रव्य और पर्याय है । प्रत्येक अर्थ में केवल नाम, केवल आकार, केवल द्रव्य अथवा केवल पर्याय, कहीं भी नहीं है । घट को जब देखते हैं तब आकार, अनुगामी द्रव्य और भाव एक काल में दिखाई देते हैं, द्रव्य पर्यायों के बिना और पर्याय द्रव्य के बिना जिस प्रकार नहीं प्रतीत होते । इस प्रकार द्रव्य और पर्याय आकार के बिना भी नहीं प्रतीत होते। नाम की प्रतीति तब स्पष्ट रूप से होती है जब नाम का उच्चारण किया जाता है । उच्चारण न होने पर भी वस्तु को देखकर नाम का स्मरण अवश्य होता है । चक्षु से स्थापना द्रव्य और भाव का प्रत्यक्ष जिस प्रकार होता है, इस प्रकार नाम का प्रत्यक्ष यद्यपि नहीं होता तो भी नाम का स्मरण अवश्य होता है । किसी भी इन्द्रिय के द्वारा प्रत्यक्ष हो, नाम का संबंध अवश्य रहता है । अर्थ से सर्वथा दूर रहकर नाम का अनुभव नहीं होता । अर्थ और ज्ञान जिस शब्द के द्वारा कहे जाते हैं, उसी शब्द से नाम भी कहा जाता है । अर्थ को घट कहते है, उसके ज्ञान को घट का ज्ञान कहते हैं । नाम को भी घट कहते हैं । इस प्रकार सब का आकार समान है । समस्त अर्थ नाम आदि के रूप में हैं इसलिए नाम, स्थापना, द्रव्य भी भाव के समान वस्तु हैं, यह नाम आदि का समुदायवाद है । नाम आदि चार निक्षेप हैं इनके माननेवाले नर्यो का निक्षेप के वाचक शब्दों द्वारा प्रतिपादन कर के नामनय आदि का प्रयोग किया गया है, नामको माननेवाला नय नामनय, स्थापना को माननेवाला स्थापनानय कहा गया है । द्रव्यनय और भावनय शब्द का प्रयोग भी इसी रीति से हैं । जो भी वस्तु है । वह सब नाम आदि चारों के रूप में है । आकाश के पुष्प आदि जो सर्वथा हैं उनमें नाम आदि चारों का स्वरूप नहीं प्रतीत होता, अतः समस्त वस्तु नाम आदि चार पर्यायों
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है ।
असत्
से
युक्त
निक्षेपों की नयों के साथ योजना :
अथ नामादिनिक्षेपा नयैः सह योज्यन्ते । तत्र नामादित्रयं द्रव्यास्तिकनयस्यैवाभिमतम्, पर्यायास्तिकनयस्य च भाव एव । आद्यस्य भेदौ संग्रहव्यवहारी, नैगमस्य यथाक्रमं सामान्यग्राहिणो विशेषग्राहिणश्च अनयोरेवान्तर्भावात् । ऋजुसूत्रादयश्च चत्वारो द्वितीयस्य भेदा इत्याचार्यसिद्धसेनमतानुसारेणाभिहितं । जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण पूज्यपादैः 'नामाइतियं दव्वद्वियस्य भावो अ पज्जवणयस्स । संगहववहारा पढमगस्स सेसो उ इयरस्स ।। ७५ ।। ' इत्यादिना विशेषावश्यके ।
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