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निक्षेपयोजन
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कहने का सार यह है कि, वस्त का नाम वस्तु के ज्ञान में निमित्त कारण है । घट के रूप आदि गण घट के ज्ञान में कारण हैं। घट के रूप आदि पट के धर्म नहीं है इसलिए उनके द्वारा पट का ज्ञान नहीं होता । घट के ज्ञान में कारण होने से घटनाम भी रूप आदि के समान घट का धर्म है । धर्म और धर्मी का अभेद भी होता है इसलिए घट और घटनाम का अभेद भी मानना चाहिए । समस्त वस्तुओं का ज्ञान उनके वाचक पदों से होता है इसलिए समस्त वस्तुओं को नामात्मक समझना चाहिए । घट वस्तु है इस लिए उससे अलग न रहनेवाला घटनाम भी वस्तु है । जब नाम-स्थापना और द्रव्य भिन्न भिन्न वस्तुओं में होते हैं, तब उनका स्वरूप भाव का साधन होता है इस अपेक्षा से नाम आदि का वस्तु रूप में प्रतिपादन इस रीति से किया है । अब 'आकार' की वस्तुरूपता में युक्ति बताते है -
साकारं च सर्वं मति-शब्द-घटादीनामाकारवत्त्वात्, नीलाकारसंस्थानविशेषादीनामाकाराणामनुभवसिद्धत्वात्।
अर्थ : समस्त पदार्थ आकार से युक्त हैं, बुद्धि-शब्द और घट आदि अर्थ आकारवाले हैं, नील आदि और आकृति विशेष आदि आकार अनुभव से सिद्ध हैं ।
कहने का आशय यह है कि बुद्धि जब विषय को प्रकाशित करती है, तब विषय का जो आकार होता है, उस आकार में स्वयं भी हो जाती है । सूर्य आदि का प्रकाश जब वृक्ष आदि को प्रकाशित करता है तब वृक्ष के आकार में हो जाता है । बुद्धि भी सूर्य आदि के प्रकाश के समान वृक्ष आदि की प्रकाशक है । वह भी वृक्ष आदि के आकार को धारण करती है । ज्ञाता को जिस प्रकार बाह्य वृक्ष आदि में आकार प्रतीत होता है । इसी प्रकार ज्ञान में भी वृक्ष आदि का आकार
त होता है । यह ज्ञान वक्ष का है और मेघ आदि का नहीं है. यह व्यवस्था भी बिना आकार के नहीं हो सकती । यदि वृक्ष के ज्ञान में वृक्ष का आकार प्रतीत न हो, तो यह ज्ञान वृक्ष का है, मेघ आदि का नहीं - इस प्रकार की व्यवस्था नहीं हो सकती । आकार विषय की व्यवस्था का नियामक है । बाह्य घट आदि वस्तु का आकार प्रत्यक्ष से सिद्ध है । शब्द पुद्गल का परिणाम है । इसलिए वह भी आकार से युक्त है । आकार से युक्त वर्ण जब क्रम से रहते हैं तब उनका आकार विशेष नाम से कहा जाता है । पहले घ् पीछे अ फिर - ट् उसके अनन्तर अ का उच्चारण जब क्रम के साथ होता है, तो 'घट' पद का एक आकार प्रकट होता है । पट आदि शब्दों का आकार घट पद के आकार से भिन्न है । वाच्य अर्थो के समान वाचक शब्दों का भी आकार है । अर्थों का आकार बाह्य चक्षु आदि इन्द्रियों का विषय है और पदों का आकार श्रोत्र का विषय है इतना भेद है, वस्तु और आकार में अत्यन्त भेद नहीं है - इसलिए वृक्ष आदि के समान आकार भी वस्तुरूप है।
अब सर्व पदार्थ द्रव्यात्मक है, इस बात को स्पष्ट करते है - द्रव्यात्मकं च सर्वं उत्फणविफणकुंडलिताकारसमन्वितसर्पवत् विकाररहितस्याविर्भावतिरोभावमात्रपरिणामस्य द्रव्यस्यैव सर्वत्र सर्वदानुभवात् ।
अर्थ : सब पदार्थ द्रव्यात्मक है, ऊँची फणावाले और फणा से रहित और कुंडली आकार से युक्त सर्प के समान विकार से रहित आविर्भाव और तिरोभावरूप केवल परिणाम से युक्त द्रव्य का ही समस्त देश और काल में अनुभव होता है ।
कहने का आशय यह है कि, अर्थों में विकार प्रतिक्षण उत्पन्न होते रहते हैं । कुछ विकारों का आकार बहुत भिन्न होता है । जहाँ आकार बहुत अधिक भिन्न होता है, वहाँ विकार स्पष्ट रूप से प्रतीत होता है । मिट्टी का पिंड जब घट बन जाता है तब पिंड का जो आकार है उससे घट के आकार का भेद देखते ही प्रतीत हो जाता हैं । दूध जब दही के रूप में परिणत
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