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षड्दर्शन समुच्चय भाग - २, श्लोक - ७६, मीमांसक दर्शन
चलता है वह नहीं चल सकेगा। (१) अथवा अभाव वस्तु है, क्योंकि उसमें गाय आदि की तरह अनुवृत्ति - व्यावृत्तिविशेष बुद्धि होती है। तथा वह प्रमाण का विषय है - प्रमेय है । (२) अवस्तु के प्रागभावादि चार भेद नहीं हो सकते । इसलिए अभाव के प्रागभावादि अवांतर भेद होने से वह वस्तु है । घट आदि कार्यो का अभाव ही मृत्पिंड आदि कारण का सद्भाव है। (३) वस्तुओ का अपने अपने नियतस्वरुप में स्थिर रहना परस्पर मिलना नहीं, वही अभाव की सत्ता का साक्षात् प्रमाण है। दूध आदि कारणो में दहीं आदि कार्यो का न होना उसे ही प्रागभाव कहा जाता है। (४) दहीं आदि कार्य में दूध आदि कारणो का न होना वही प्रध्वंसाभाव का लक्षण है। गाय में घोडे आदि का अभाव अन्योन्याभाव कहा जाता है। खरगोस के मस्तक में अवयवो में वृद्धि तथा कठिनता न होना और निम्न समतल में रहना, वह सिंग का अत्यंताभाव कहा जाता है। (६) यदि इन सबका व्यवस्थापक अभाव नाम का प्रमाण न हो तो वस्तु की प्रतिनियत व्यवस्था तूट जायेगी । अर्थात् प्रतिनियत व्यवस्था में कोई नियामक न रहने से... "दूध में दहीं, दहीं में दूध, घट में पट और खरगोस के मस्तक के उपर सिंग, पृथ्वी आदि में चैतन्य, आत्मा में मूर्तता, पानी में गंध, अग्नि में रस, वायु में रुप-रस-गंध, आकाश में स्पर्श आदि मानने का प्रसंग आ जायेगा, यदि अभाव की प्रमाणता नहि मानोंगे तो (७-८)
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(कहने का मतलब यह है कि, अभावप्रमाण का विषयभूत अभावपदार्थ वस्तुरुप है । अवस्तुरुप नहीं । तथा वह अभाव प्रागभावादि भेद से चार प्रकार के है । यदि ये चार प्रकार का अभाव न हो तो जगत में कार्य, कारण तथा घट, पट, जीव, अजीव आदि की प्रतिनियत व्यवस्था का लोप हो जाने से समस्तव्यवहार नष्ट हो जायेंगे। ये समस्त कार्यकारण आदि व्यवहार सर्वलोकप्रसिद्ध है । उसका लोप करने से वस्तुमात्र का अभाव हो जायेगा। मीमांसक श्लोकवार्तिक में कहा भी है कि... "यदि प्रागभावादि भेद से अभाव के चार भेद न हो तो संसार में यह कार्य है, यह कारण है इत्यादि व्यवहार ही नहि हो सकेगा । कार्य के प्रागभाव को कारण तथा प्रागभाव के प्रध्वंस को ही कार्य कहा जाता है । प्रागभाव और प्रध्वंसाभाव न हो तो कारण कार्य व्यवहार किसके बल पर बन सकता है ?" अथवा अभाव वस्तु है, क्योंकि उसमें गाय आदि की तरह "अभाव अभाव" यह अनुवृत्ति = अनुगतप्रत्यय सामान्यप्रत्यय तथा “प्रागभाव" "प्रध्वंसाभाव" यह व्यावृत्त = विलक्षणप्रत्यय
विशेषप्रत्यय होता है । तथा वह प्रमाण का विषय है - प्रमेय है । अवस्तु के तो वे प्रागभावादि भेद हो सकते ही नहीं है। इसलिए अभाव के प्रागभावादि अवांतर भेद है, इसलिए ही वस्तु है । घट आदि कार्य का अभाव ही मृत्पिंड आदि कारणो का सद्भाव है । तात्पर्य यह है कि अभाव सर्वथा तुच्छ नहीं है । भावान्तररुप है । घट का अभाव शुद्धभूतलरुप है। कार्य का अभाव कारण के सद्भावरुप है । वस्तुओ का अपने अपने स्वरुप में नियत रहना बल्कि एकदूसरे में मिल न जाना, वही अभाव की सत्ता का प्रबल प्रमाण है। दूध आदि कारणो में दहीं आदि कार्यो का न होना वही प्रागभाव है। यदि प्रागभाव न हो तो दूध में भी दहीं मिलना चाहिए । दहीं आदि कार्यों में दूध आदि कारणो का न होना वही प्रध्वंसाभाव है । यदि प्रध्वंसाभाव न हो तो दूध का नाश न होने से, दहीं अवस्था में भी उसका सद्भाव रहना चाहिए। गाय आदि
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