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षड्. समु. भाग-२, परिशिष्ट-३, जैनदर्शन में नयवाद
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समभिरूढाभास : पर्यायध्वनीनामभिधेयनानात्वमेव कक्षीकुर्वाणः समभिरूढाभास: (98), यथा इन्द्रः शक्रः पुरन्दरः इत्यादयः शब्दा भिन्नाभिधेया एव भिन्नशब्दत्वात् करिकुरंगशब्दवदिति ।
अर्थ : पर्याय शब्दों में अर्थ के भेद को ही स्वीकार करनेवाला समभिरूढाभास होता है । जैसे इन्द्र, शक्र पुरन्दर इत्यादि शब्दों के अर्थ भिन्न-भिन्न ही हैं, भिन्न शब्द होने से, करी-कुरङ्ग शब्द के समान ।
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करी शब्द का अर्थ हाथी और कुरंग शब्द का अर्थ हरिण है । इसी प्रकार अनेक शब्द हैं, जिनके अर्थ भिन्न हैं । शब्द के भेद से अर्थ के भेद को देखकर जब नियम बना लिया जाता है कि 'जहाँ शब्दों का भेद है वहाँ अर्थो का भेद है।' तब वस्तु का स्वरूप अयुक्त हो जाता है । इस प्रकार के अनेक शब्द हैं जो एक अर्थ के वाचक होते हैं । एक अर्थ में अनेक धर्म रहते हैं, उनमें से किसी एक धर्म का प्रकाशन एक शब्द करता है, तो दूसरा शब्द उसी एक अर्थ के अन्य धर्म का प्रतिपादन करता है । एक धर्मी का प्रतिपादन करनेवाले अनेक शब्द हो सकते हैं । वस्तु इस स्वरूप का जब एकान्तवाद के द्वारा निषेध किया जाता है, तब समभिरूढ नयाभास होता है । पर्याय शब्द अर्थ के भिन्न धर्मों को कहते हैं, भिन्न धर्मियों को नहीं ।
एवंभूताभास: क्रियानाविष्टवस्तु शब्दवाच्यतया प्रतिक्षिपन्नेवंभूताभास: (99), यथा विशिष्टचेष्टाशून्यं घटाख्यं वस्तु न घटशब्दवाच्यं घटशब्दप्रवृत्तिनिमित्तभूतक्रियाशून्यत्वात् पटवदिति ।
अर्थ : क्रिया से रहित वस्तु शब्द के द्वारा वाच्य नहीं है, इस प्रकार कहनेवाला एवंभूताभास होता है । जैसे विशिष्ट ट से शून्य घटनामक वस्तु घट शब्द का वाच्य नहीं है, घट शब्द की प्रवृत्तिनिमित्तक्रिया से शून्य होने के कारण, जैसे पट अर्थ के समान ।
क्रिया का आश्रय लेकर शब्द अर्थों के वाचक होते हैं । जो पाक करता है उसको पाचक कहते हैं । लोहार पाक नहीं करता इसलिए पाचक शब्द का वाच्य अर्थ लुहार नहीं है । इस वस्तु का अत्यंत आश्रय लेकर जब कहा जाता हो, किसी को पाचक तभी कहना चाहिये जब वह पका रहा हो । जब कहीं जा रहा हो अथवा बैठा हो वा सो रहा हो तब उसके लिये पाचक शब्द का प्रयोग नहीं करना चाहिए । इस प्रकार का अभिप्राय एवंभूताभास है । शब्दों की प्रवृत्ति में निमित्त सदा क्रिया नहीं होती । जाति आदि शब्दों के प्रवृत्ति निमित्त होते हैं । जल लाना आदि क्रिया के कारण घट को घट शब्द से कहा जाता है । परन्तु घट शब्द की प्रवृत्ति में निमित्त घटत्व जाति है । जब घट एक स्थान पर स्थिर हो, उसके द्वारा पानी न लाया जा रहा हो, तब भी उसमें घटत्व जाति रहती है । इसलिए उसको घट शब्द से कहा जा सकता है । जहाँ पर क्रिया के कारण शब्द की प्रवृत्ति होती है, वहाँ पर भी क्रिया का सदा होना आवश्यक नहीं होता । यदि उचित समय पर पाक करता है, तो चलते वा सोते भी पाचक कहा जा सकता है । पाचक होने के लिये क्रिया को एकान्तरूप से कारण माननेवाला अभिप्राय एवंभूत नयाभास हो जाता है ।
98. एतदाभासमाभाषन्ते-पर्यायध्वनीनामभिधेयनानात्वमेव कक्षीकुर्वाणस्तदाभासः ।।७-३८ ।। यथा-इन्द्रः, शक्रः, पुरन्दरः इत्यादयः शब्दा भिन्नाभिधेया एव, भिन्नशब्दत्वात्, करिकुरङ्ग-तुरङ्गशब्दवदित्यादिः ।।७ - ३९ ।। यः पर्यायशब्दानामभिधेयनानात्वमेवाभिप्रैति एकार्थाभिधेयत्वं पुनरमुष्य सर्वथा तिरस्कुरुते स तदाभासः समभिरुढाऽऽभासः || ३८ ।। (प्र.न. तत्त्वा.) 99. एवंभूताभासमाचक्षते - क्रियाऽनाविष्टं वस्तु शब्दवाच्यतया प्रतिक्षिपंस्तु तदाभासः ।।४२।। यथा - विशिष्टचेष्टाशून्यं घटाख्यं वस्तु न घटशब्दवाच्यं, घटशब्दप्रवृत्तिनिमित्तभूतक्रियाशून्यत्वात्, पटवदित्यादिः ।। ४३ ।। यः शब्दानां क्रियाऽऽविष्टमेवार्थं वाच्यत्वेनाभ्युपगच्छति क्रियानाविष्टं तु सर्वथा निराकरोति स एवम्भूतनयाऽऽभासः ।। ४२ ।। अयमस्याशयः- चेष्टार्थकाद् घटधातोर्निष्पन्नत्वाद् घटशब्दस्य चेष्टाविरहितो घटरूपोऽर्थो वाच्यो न भवितुमर्हति घटशब्दप्रवृत्ती निमित्तभूता या चेष्टाऽऽख्या क्रिया तच्छून्यत्वात् पटवत् । यथा-पटो घटीयचेष्टाशून्यत्वाद् घटशब्दवाच्यो न भवति, तथैव चेष्टाशून्यो घटोऽपि घटपदवाच्यो न भवति ।। ४३ ।। (प्र.न. तत्त्वा.)
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