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सप्तभंगी
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स्वद्रव्यादि से जो अस्तित्व हैं और परद्रव्यादि से जो नास्तित्व हैं । उन दोनों को एक साथ एक ही शब्द से कहने जाये तो कोई ऐसा पारिभाषिक शब्द नहीं है कि, जो एक शब्द से दोनों स्वरूप साथ में कहे जा सके, इसलिए युगपत् रूप से उभयनय को आश्रयी वस्तु " स्यादवक्तव्य एव" । यह तीसरा भांगा होता हैं ।
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" मिट्टी की अपेक्षा से अस्ति और सोने-चांदी की अपेक्षा से नास्ति" यह घट का एक स्वरूप समजाया। उपरांत लाल मिट्टी का बना हुआ हैं, पीली मिट्टी का बना हुआ नहीं है, कोमल मिट्टी का बना हुआ हैं, परन्तु कर्कश मिट्टी का बना हुआ नहीं है तथा पुद्गल द्रव्य का बना हुआ हैं, जीवद्रव्य का बना हुआ नहीं हैं । इस प्रकार इस घट में अकेले द्रव्य के आश्रय से भी अनंता अस्ति नास्ति स्वरूप रहे हुए हैं । इन स्वरुपो को शास्त्रो में " अंश" शब्द से समझाया जाता हैं । अब यहाँ आगे-आगे जब जब " अंश" शब्द उपयोग में लिया जाये, तब तब "स्वरूप" अर्थ करे । परन्तु भाग ( हिस्सा) टुकडे या देश ऐसा अर्थ न करे । संस्कृत वाक्यो में ये सात भांगे समजाते हुए महापुरुषोने “ अंश" शब्द का बारबार प्रयोग किया हैं । जैसे कि इसी घट का एक अंश (स्वरूप) प्रथम स्वद्रव्य से सोचे और उसी घट का दूसरा अंश (दूसरा स्वरूप) परद्रव्य से सोचे ऐसे क्रमश: दोनों नयो से दोनों स्वरूप (अंश) सोचे तो यही घट " स्यादस्ति, स्यान्नास्ति" । यह चौथा भांगा होता है । इस भांगो में और इसके बाद के भांगे में “घट का एक अंश अस्तिरुप से और घट का दूसरा एक अंश नास्तिरूप से" ऐसे लिखा हुआ वाक्य आये तब अंश शब्द सुनकर घट का एक भाग अस्तिरूप से हैं और घट का दूसरा एक भाग नास्ति रुप से हैं, ऐसा अर्थ समज में आ जाता हैं और इसलिए भ्रम हो जाता है । परन्तु घडे के ऐसे दो अंशों (भागों) में क्रमशः अस्ति नास्ति स्वरूप दिखता नहीं है और हैं भी नहीं परन्तु संपूर्ण घडे में अस्ति नास्ति स्वरूप व्याप्त हैं और वैसा दिखता है। इसलिए यहाँ " अंश" शब्द का अर्थ 'स्वरूप' करे । स्वद्रव्य से अस्ति और परद्रव्य से नास्ति क्रमशः सोचे तब यह चौथा भांगा "स्यादस्ति नास्ति एव" ऐसा होता हैं ।
उसके बाद पहला और चौथा भांगा साथ करने से पांचवाँ "स्यादस्ति अवक्तव्य एव" भांगा, दूसरा और चौथा साथ करने से " स्यान्नास्ति अवक्तव्य एव" नाम का छठ्ठा भांगा, तीसरा और चौथा साथ करने से " स्यादस्ति नास्ति अवक्तव्य एव" नाम का सातवाँ भांगा होता है । जैन दर्शन में इन सात भांगो को "सप्तभंगी" कहा जाता हैं । इस अनुसार से उसी घट में पुद्गलद्रव्य रुप से अस्ति और जीव द्रव्य रूप से नास्ति, रुपी द्रव्यरूप से अस्ति और अरुपी द्रव्यरुप से नास्ति इत्यादि प्रकार से विचारणा करने से स्वद्रव्य और परद्रव्य मात्र के ही आश्रय से अस्तित्व नास्तित्व भी अनेक प्रकार का होने से अनेक सप्तभंगीयाँ स्वद्रव्य-परद्रव्य के आश्रय से होती हैं ।
1 तिम क्षेत्रादिक विशेषणई पणि अनेक भंग थाई : जैसे स्वद्रव्य और परद्रव्य के आश्रय से अनेक सप्तभंगी हुई । उसी तरह से स्वक्षेत्र - परक्षेत्र के आश्रय से स्वकाल-परकाल के आश्रय से, स्वभाव- परभाव के आश्रय से भी अनेक सप्तभंगीयाँ स्वरूप भांगे होते हैं । जैसे कि, यही मिट्टी का घट अहमदाबाद में निष्पन्न होने रूप अस्ति स्वरूप हैं। परन्तु सुरत आदि अन्य शहरो में बनने रुप से नास्ति स्वरूप हैं । अहमदाबाद के भी कुछ खास गलीवाले क्षेत्र आश्रय से अस्ति स्वरूप हैं, शेष गलीयों के आश्रय से नास्ति स्वरूप हैं । वसंतऋतु में बनने रूप से अस्ति स्वरूप हैं । शिशिरादि अन्य ऋतुओं में बनने रुप से नास्ति स्वरूप हैं । पके हुए लाल रंग का घट सोचे तो अस्तिरूप हैं और अपक्वरुप से तथा श्यामरुपादि भाव से नास्ति स्वरूप हैं । इस तरह से क्षेत्रादिक (क्षेत्र-काल- भाव) विशेषणो के आश्रय से बहोत ही सप्तभंगीयाँ होने स्वरूप अनेक भांगे होते हैं ।
तथा द्रव्यघट स्वकरी विवक्षिइं, ति वारई क्षेत्रादिक पर थाइ इम प्रत्येकइं सप्तभंगी पणि कोडीगमइ नीपजइ । तथा जैसे द्रव्य-द्रव्य में स्व-पर का भेद किया गया और उसके आश्रय से अस्ति नास्ति स्वरूप जाना । उसी तरह से
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