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षड्. समु. भाग-२, परिशिष्ट-३, जैनदर्शन में नयवाद
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न केवलं कालादिभेदेनैवर्जुसूत्रादल्पार्थता शब्दस्य, किन्तु भावघटस्यापि सद्भावासद्भावादिनाऽर्पितस्य स्याद् घटः स्यादघट इत्यादिभङ्गपरिकरितस्य तेनाभ्युपगमात् तस्यर्जुसूत्राद् विशेषिततरत्वोपदेशात् । (जैनतर्क भाषा )
अर्थ : काल आदि के भेद से अर्थ में भेद मानने के कारण ही शब्दनय, ऋजुसूत्रनय से अल्प विषयवाला नहीं है किन्तु सद्भाव और असद्भाव की विवक्षा से कथंचित् घट और कथंचित् अघट इत्यादि भङ्गों के साथ भाव घट को मानने के कारण भी अल्प विषय वाला है, इस रीति से शब्द नय ऋजुसूत्र की अपेक्षा अधिक विशिष्ट अर्थात् अधिक संकुचित अर्थ का प्रतिपादन करता है ।
कहने का फलितार्थ यह है कि, शब्द नय के अनुसार शब्द का अर्थ प्रधान है, इस कारण शब्द के द्वारा प्रतीत होनेवाला अर्थ जिस वस्तु में हो सके उसको शब्द नय वास्तव में सत्य मानता है । घट् धातु से घट नाम की उत्पत्ति है। घट् धातु का अर्थ चेष्टा है । जल का लाना आदि क्रिया यहाँ पर चेष्टा है । जिस के द्वारा जल लाया जा सकता है वह मिट्टी का बना घडा भाव घट है और वही शब्द नय के अनुसार सत्य है । नाम घट स्थापना घट अथवा द्रव्य घट शब्दनय के अनुसार सत्य रूप से घट नहीं हैं । नाम आदि घटों से पानी नहीं लाया जा सकता । उन में घट शब्द का प्रयोग मुख्य नहीं है किन्तु गौण है।
इतना ही नहीं ऋजुसूत्र नय वर्तमान काल के जिस भाव घट को स्वीकार करता है उसको भी शब्द नय सात भंगों में से किसी एक भंग के द्वारा विशिष्टरूप में स्वीकार करता है। ऊंची ग्रीवा आदि स्वपर्यायों की अपेक्षा से जब सत् रूप में घट की विवक्षा होती है तब वह घट कहा जाता है । पट त्वचा को रक्षा करता है । इस पट पर्याय के द्वारा असत् रूप से विवक्षा के कारण घट अघट । स्व और पर दोनों पर्यायों के साथ विवक्षा की जाय तो कोई शब्द घट को नहीं कह सकता, इसलिए अवक्तव्य हो जाता है । इसके अनन्तर इन तीनों भंगों के परस्पर सम्बन्ध से अन्य चार भंग भी बन जाते हैं। जल लाने में सामर्थ्य रूप घट शब्द के मुख्य अर्थ को लेकर शब्द नय भाव घट में सात भंगों को स्वीकार करता है । परन्तु ऋजुसूत्र जल लाने आदि क्रिया के कारण भाव घट को सात भंगों के साथ नहीं मानता । ऋजुसूत्र का वर्तमान काल में घट का जो स्वरूप है उसी के साथ मुख्य रूप से सम्बन्ध है । शब्द के वाच्य अर्थ पर आश्रित सात भंगों के साथ जो स्वरूप है उसके विषय में ऋजुसूत्र का ध्यान नहीं है । इस रीति से शब्द नय का विषय बहुत संकुचित हो जाता है। ऋजुसूत्र के अनुसार जल लाने का सामर्थ्य न होने पर भी यदि घट के आकार की प्रतीति होती है तो घट शब्द का प्रयोग हो सकता है । इस दशा में ऋजुसूत्र के अनुसार जल का लाना आदि जो घट शब्द की वाच्य क्रिया है उसका आश्रय लेकर सात भंग नहीं हो सकते; अतः ऋजुसूत्र का विषय शब्द नय से बहुत अधिक है । अधिक स्पष्टता करते हुए कहते है कि,
यद्यपीदृशसम्पूर्णसप्तभङ्गपरिकरितं वस्तु स्याद्वादिन एव सङ्गिरन्ते, तथापि ऋजुसूत्रकृतैतदभ्युपगमापेक्षयाऽन्यतरभङ्गेन विशेषितप्रतिपत्तिरत्रादुष्टेत्यदोष इति वदन्ति । (जैनतर्कभाषा)
अर्थ : यद्यपि इस प्रकार सात भङ्गों से युक्त वस्तु को स्याद्वादी ही स्वीकार करते हैं तो भी ऋजुसूत्र के द्वारा इस वस्तु का जो स्वीकार किया जाता है उसकी अपेक्षा शब्द नय में किसी एक भङ्ग से विशिष्ट अर्थ की प्रतीति दोष से रहित है इसलिए इस विषय में कोई दोष नहीं है, इस प्रकार कहते हैं ।
कहने का आशय यह है कि, अर्थ के किसी एक धर्म का प्रतिपादन करना नय का मुख्य स्वरूप है । सातों भंगों के साथ प्रतिपादन करने पर अनेक धर्मों का निरूपण होने से शब्द नय स्याद्वाद हो जायेगा । स्याद्वाद प्रमाणरूप है। यदि शब्द नय सात भंगों से अर्थ का प्रतिपादन करे तो यह प्रमाण हो जाना चाहिए । नय का स्वरूप नहीं रहेना चाहिए । इस आशंका को दूर करने के लिए कहते हैं कि, यद्यपि स्याद्वादी सप्तभंगी को स्वीकार करते हैं और सप्तभंगी सात भंगों
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