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षड्. समु. भाग-२, परिशिष्ट-३, जैनदर्शन में नयवाद लिंग, संख्या, कारक और शब्द इन छः में 'घट' पद की शक्ति को माननेवाला अध्यवसाय विशेष को षट्करूप विशेषग्राही नैगमनय कहते हैं । इस नय की मान्यता के अनुसार शब्द से भी ज्ञान संभवित हैं। इसलिए जाति आदि की तरह उसमें भी पद की शक्ति हैं । यहाँ जैसे घट को लेकर एक, दो, तीन आदि विकल्प बताये, वैसे जगत के सर्व पदार्थो पूर्वरीति से विकल्प बताकर नैगमनय के भेदो को समझा जा सकता है । अब अन्य ग्रंथो के आधार पर भिन्न-भिन्न अपेक्षा से नैगमनय के तीन प्रकार बताते हैं।
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- नैगमनय के तीन प्रकार :
नैगमस्त्रेधा भूतभाविवर्तमानकालभेदात् । अतीते वर्तमानारोपणं यत्र स भूतनैगमः । यथा अद्य दीपमालिकायां अमावास्यायां महावीरो मोक्षं गतः । भाविकाले वर्तमानारोपणं यत्र स भाविनैगमः । यथा अर्हन् सिद्ध एव । कर्तुमारब्धं इषन्निष्पन्नं अनिष्पन्नं वा वस्तु निष्पन्नवत् कथ्यते यत्र स वर्तमाननैगमः । यथा - ओदनं पच्यते ।
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गमन के तीन प्रकार हैं- (१) जहाँ अतीत में वर्तमानकाल का आरोप किया जाता है, वह भूतनैगम नय हैं । जैसे कि, आज दीपावली - अमावस्या के दिन प्रभु महावीर मोक्ष में गये थे । (प्रभु महावीर तो २५०० से अधिक वर्ष पहले गये थे । प्रभु के अतीतकालीन निर्वाणगमन का आरोप आज के दिन (वर्तमान) में करना, उसे भूतनैगम नय कहा जाता हैं । यहाँ अतीत में वर्तमान का उपचार किया गया हैं ।)
श्री देवसेनगणिकृत नयचक्रालाप पद्धति ग्रंथ में नैगमनय के तीन प्रकार बताये हैं
(२) भाविकाल में वर्तमान का आरोप करना, उसे भाविनैगम नय कहा जाता हैं । जैसे कि अरिहंत सिद्ध ही है । अरिहंत (चार अघाती कर्म का नाश करके) भविष्य में सिद्ध होनेवाले हैं, वर्तमान में वह सिद्ध नहीं है । फिर भी वर्तमान में अरिहंत को सिद्ध कहना वह भाविनैगमनय की अपेक्षा से हैं ।
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(३) करने के लिए आरंभ हुए वस्तु कुछ (थोडी) निष्पन्न हो गई हो अथवा अनिष्पन्न हो, तो भी वहाँ पर वस्तु निष्पन्न हो गई है, उस तरह से कहा जाये, वह वर्तमान नैगमनय कहा जाता हैं । जैसे कि, चावल पका हुए ही न हो, कि कुछ अंश में पका हुए हो, तब " ओदनं पच्चते" ऐसा प्रयोग हो, वह वर्तमान नैगमनय की अपेक्षा से हैं ।
अन्य तरह से तीन प्रकार :
स नैगमस्त्रिप्रकारः आरोपांशसंकल्पभेदात् । तत्र चतुः प्रकारः आरोपः द्रव्यारोप- कालारोप कारणाद्यारोपभेदात् । तत्र गुणे द्रव्यारोपः पञ्चास्तिकायवर्तनागुणस्य कालस्य द्रव्यकथनं एतद् गुणे द्रव्यारोपः । ।१ । । ज्ञानमेवात्मा अत्र द्रव्ये गुणारोपः । । २ । । वर्तमानकाले च अतीतकालारोपः अद्यैव दीपोत्सवे वीरनिर्वाणं, वर्तमानकाले अनागतकालारोपः अद्यैव पद्मनाभनिर्वाणं, कारणे कार्यारोपः बाह्यक्रियायाः धर्मत्वं धर्मकारणस्य धर्मत्वेन कथनम् । सङ्कल्पो द्विविध: - स्वपरिणामरूपः कार्यान्तरपरिणामश्च । अंशोऽपि द्विविधः भिन्नोऽभिन्नश्चेत्यादि । (नयचक्रसार)
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नैयमनय के तीन प्रकार हैं: (१) आरोप, (२) अंश और (३) संकल्प (अन्यत्र प्रसिद्ध धर्म का अन्य स्थान पे आरोपण करना उसे आरोप कहा जाता हैं ।) ऐसा आरोप नैगमनय से संभव होता हैं । आरोपित वस्तु को भी वस्तु के रूप में स्वीकार करने का काम नैगमनय करता 1
(१) आरोप : आरोप के चार प्रकार हैं : (१) द्रव्यारोप, (२) गुणारोप, (३) कालारोप (४) कारणादि आरोप । जिसमें गुण में द्रव्य का आरोप किया जाये उसे द्रव्यारोप कहा जाता हैं। जैसे कि, धर्मास्तिकाय आदि पंचास्तिकाय 'गुण को काल द्रव्य कहना, वह गुण में द्रव्य का आरोप करके किया गया यह कथन हैं ।... (१)
के "वर्तना"
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