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षड्. समु. भाग-२, परिशिष्ट-३, जैनदर्शन में नयवाद
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त्यागपूर्वक अन्य स्वभाव में परिणमन पाता हैं, उस स्वभाव को “ विभावपर्याय" कहा जाता हैं (16) जैसे कि, मोक्षावस्था में जीव का “अगुरुलघु" पर्याय और ज्योतिष्क विमानादि का “ घंटाकार” पर्याय, स्थिर स्वभाव होने से वह 'स्वभाव पर्याय' कहा जाता है । जब कि, संसारी अवस्था में जीव का "गुरुलघु" पर्याय या "मनुष्यत्वादि" पर्याय अन्य अन्य पर्यायो में परिणमन होता होने से 'विभाव पर्याय' कहा जाता है ।
विशेष में... सप्तभंगी - नयप्रदीप ग्रंथ में बताया हैं कि, गुण के विकारो को पर्याय कहे जाते हैं । वे स्वभाव और विभाव के भेद से दो प्रकार के हैं । "अगुरुलघु” पर्याय स्वभाव पर्याय है । उसके षड्वृद्धि - हानि स्वरूप बारह प्रकार हैं। वह इस प्रकार हैं- (१) अनंतभागवृद्धि, (२) असंख्यातभागवृद्धि, (३) संख्यातभागवृद्धि, (४) संख्यातगुणवृद्धि, (५) असंख्यातगुणवृद्धि, (६) अनंतगुणवृद्धि, (यह छः वृद्धि है ।) (७) अनंतभागहानि, (८) असंख्यात भागहानि, (९) संख्यात भागहानि, (१०) सांख्यातगुणहानि, (११) असंख्यातगुणहानि, (१२) अनंतगुणहानि ।
वैभाविक पर्याय चार है । मनुष्यत्वादि चार पर्याय वैभाविक हैं । ( इस जीव के बारे में जाने ।) पुद्गल के वैभाविक पर्याय द्व्यणुकादि है । (इस विषय में विशेष पेटाभेद आदि की अन्य बाते अन्य ग्रंथो से जान लेना ।) अनादि अनंत द्रव्य में स्वर्याय प्रतिक्षण उत्पन्न होता है और नाश प्राप्त करता है । जैसे पानी के अंदर सतत तरंग उठते हैं, वैसे अनादि अनंत द्रव्य में प्रतिक्षण पर्याय उत्पन्न होते है और नष्ट होते हैं । अब जीवादि द्रव्य के अंदर जो सामान्य और विशेष स्वभाव है वह देखेंगे ।
सामान्य स्वभाव : (१) अस्ति स्वभाव, (२) नास्ति स्वभाव, (३) नित्य स्वभाव, (४) अनित्य स्वभाव, (५) एक स्वभाव, (६) अनेक स्वभाव, (७) भेद स्वभाव, (८) अभेद स्वभाव, (९) भव्य स्वभाव, (१०) अभव्य स्वभाव और (११) परम स्वभाव : इस प्रकार जीवादि द्रव्यो में ग्यारह सामान्य स्वभाव हैं ।
विशेष स्वभाव : (१) चेतन स्वभाव, (२) अचेतन स्वभाव, (३) मूर्त स्वभाव, (४) अमूर्त स्वभाव, (५) एक प्रदेश स्वभाव, (६) अनेक प्रदेश स्वभाव, (७) विभाव स्वभाव, (८) शुद्ध स्वभाव, (९) अशुद्ध स्वभाव, (१०) उपचरित स्वभाव इस प्रकार द्रव्यो में दस विशेष स्वभाव हैं ।
विशेष में, द्रव्य के अंदर दस सामान्य गुण और सोलह विशेष गुण होते हैं, वह इस प्रकार हैं ।
दस सामान्य गुण : (१) अस्तित्व, (२) वस्तुत्व, (३) द्रव्यत्व, (४) प्रमेयत्व, (५) अगुरुलघुत्व, (६) प्रदेशत्व, (७) चेतनत्व, (८) अचेतनत्व, (९) मूर्तत्व, (१०) अमूर्तत्व ।
इस प्रकार द्रव्यो के दस सामान्य गुण हैं । पहले बताये हुए प्रत्येक द्रव्य में ये दसमें से आठ सामान्य गुण होते हैं । (क्योंकि, चेतनत्व - अचेतनत्व और मूर्तत्व - अमूर्तत्व ये दो की जोडी में से एक-एक की कमी होने से प्रत्येक द्रव्य में आठ गुण होते हैं । जैसे कि, जीव में चेतनत्व हैं, अचेतनत्व नहीं है और बाकी के पाँच में अचेतनत्व है, चेतनत्व नहीं हैं । उसी तरह से मूर्तत्व - अमूर्तत्व के विषय में जाने ।)
सोलह विशेष गुण : (१) ज्ञान, (२) दर्शन, (३) सुख, (४) वीर्य, (५) स्पर्श, (६) रस, (७) गंध, (८) वर्ण, (९) गतिहेतुत्व, (१०) स्थितिहेतुत्व, (११) अवगाहनहेतुत्व, (१२) वर्तनाहेतुत्व, (१३) चेतनत्व, (१४) अचेतनत्व, (१५) मूर्तत्व, (१६) अमूर्तत्व इस प्रकार द्रव्य के १६ विशेषगुण हैं ।
16. स्वभाव-विभावी पर्यायौ प्रदर्श्यते तत्रागुरुलघुद्रव्यविकारः स्वभावपर्यायः, तद्विपरीतः स्वभावादन्यथाभवनं विभावः । तत्रागुरुलघुद्रव्यं स्थिरं सिद्धिक्षेत्रम् । यदुक्तं समवायाङ्गवृत्तौ “गुरुलघुद्रव्यं यत् तिर्यग्गामि वाय्वादि, अगुरुलघु यत् स्थिरं सिद्धिक्षेत्रं घण्टाकारव्यवस्थितज्योतिष्कविमानादीनि " इति ।।
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